ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 64/ मन्त्र 1
क॒था दे॒वानां॑ कत॒मस्य॒ याम॑नि सु॒मन्तु॒ नाम॑ शृण्व॒तां म॑नामहे । को मृ॑ळाति कत॒मो नो॒ मय॑स्करत्कत॒म ऊ॒ती अ॒भ्या व॑वर्तति ॥
स्वर सहित पद पाठक॒था । दे॒वाना॑म् । क॒त॒मस्य॑ । याम॑नि । सु॒ऽमन्तु॑ । नाम॑ । शृ॒ण्व॒ताम् । म॒ना॒म॒हे॒ । कः । मृ॒ळा॒ति॒ । क॒त॒मः । नः॒ । मयः॑ । क॒र॒त् । क॒त॒मः । ऊ॒ती । अ॒भि । आ । व॒व॒र्त॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कथा देवानां कतमस्य यामनि सुमन्तु नाम शृण्वतां मनामहे । को मृळाति कतमो नो मयस्करत्कतम ऊती अभ्या ववर्तति ॥
स्वर रहित पद पाठकथा । देवानाम् । कतमस्य । यामनि । सुऽमन्तु । नाम । शृण्वताम् । मनामहे । कः । मृळाति । कतमः । नः । मयः । करत् । कतमः । ऊती । अभि । आ । ववर्तति ॥ १०.६४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 64; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
विषय - 'सुखी नीरोग सुरक्षित'
पदार्थ -
[१] 'गय प्लात' हृदय में इस प्रकार की तीव्र कामना करता है कि (कथा) = किस प्रकार (यामनि) = इस जीवनयात्रा के मार्ग में (कतमस्य) = अत्यन्त आनन्दस्वरूप प्रभु के (सुमन्तु) = उत्तम मननीय (नाम) = नाम को (शृण्वताम्) = सुनते हुए (देवानाम्) = देवों के (मनामहे) = आदर करनेवाले हम हों। इन देवताओं का आदर करते हुए हम भी इनकी तरह ही प्रभु के नामों का स्मरण करेंगे, प्रभु का भजन करते हुए प्रभु में लीन होने का प्रयत्न करेंगे। [२] ऐसी स्थिति में वह (कः) = आनन्दस्वरूप प्रभु (मृडाति) = हमारे जीवन को सुखी करता है, (कतमः) = वह अत्यन्त आनन्दमय प्रभु (नः) = हमारे लिये (मयः करत्) = आरोग्य को करता है, और (कतमः) = वह अत्यन्त आनन्दमय प्रभु (ऊती) = रक्षण के द्वारा (अभि आववर्तति) = हमारी ओर आता है। हम प्रभु का स्मरण करते हैं और हमें प्रभु की ओर से 'सुख, आरोग्य व रक्षण' प्राप्त होता है ।
भावार्थ - भावार्थ- प्रभु नाम के स्मरण करनेवाले देव-पुरुषों के सम्पर्क में हम भी प्रभु का स्मरण करनेवाले होंगे। परिणामतः सुखी, नीरोग व सुरक्षित जीवनवाले होंगे, हमारे पर वासनाओं का आक्रमण न हो सकेगा।
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