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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 64/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गयः प्लातः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    क॒था दे॒वानां॑ कत॒मस्य॒ याम॑नि सु॒मन्तु॒ नाम॑ शृण्व॒तां म॑नामहे । को मृ॑ळाति कत॒मो नो॒ मय॑स्करत्कत॒म ऊ॒ती अ॒भ्या व॑वर्तति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒था । दे॒वाना॑म् । क॒त॒मस्य॑ । याम॑नि । सु॒ऽमन्तु॑ । नाम॑ । शृ॒ण्व॒ताम् । म॒ना॒म॒हे॒ । कः । मृ॒ळा॒ति॒ । क॒त॒मः । नः॒ । मयः॑ । क॒र॒त् । क॒त॒मः । ऊ॒ती । अ॒भि । आ । व॒व॒र्त॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कथा देवानां कतमस्य यामनि सुमन्तु नाम शृण्वतां मनामहे । को मृळाति कतमो नो मयस्करत्कतम ऊती अभ्या ववर्तति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कथा । देवानाम् । कतमस्य । यामनि । सुऽमन्तु । नाम । शृण्वताम् । मनामहे । कः । मृळाति । कतमः । नः । मयः । करत् । कतमः । ऊती । अभि । आ । ववर्तति ॥ १०.६४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 64; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (1)

    विषय

    इस सूक्त में अपनी भावनाओं का विद्वानों की सङ्गति से विकास, सूर्यकिरणों से लाभ, जीवन्मुक्तों से अध्ययन, परमात्मा की उपासना से मोक्षप्राप्ति आदि विषय हैं।

    पदार्थ

    (यामनि) संसारयात्रा में या जीवनमार्ग में (शृण्वतां देवानाम्) हमारी प्रार्थना को सुननेवाले देवों के मध्य (कतमस्य कथा सुमन्तु नाम मनामहे ) कौन से तथा कैसे सुमन्तव्य नाम को हम मानें-स्मरण करें (कः-नः-मृळाति) कौन हमें सुखी करता है (कतमः-मयः-करत्) कौन सुख देता है (कतमःऊती अभ्याववर्तति) कौन रक्षा के लिए पुनः-पुनः कल्याण साधने के लिए हमारे प्रति बरतता है ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य को यह विचार करना चाहिए कि इस संसारयात्रा में या जीवनयात्रा में सच्चा साथी कौन है। कौन देव मानने और स्मरण करने योग्य है। कौन सुख पहुँचाता है। कौन हमारा सच्चा रक्षक है तथा जीवन को सहारा देता है। ऐसा विवेचन करके जो इष्टदेव परमात्मा सिद्ध होता है, उसकी शरण लेनी चाहिए ॥१॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अत्र सूक्ते स्वकीयभावनानां विद्वत्सङ्गत्या विकासो रश्मिलाभो, जीवन्मुक्तेभ्योऽध्ययनं परमात्मोपासनया मोक्षप्राप्तिश्चेत्येवमादयो विषयाः सन्ति।

    पदार्थः

    (यामनि) संसारयात्रायां जीवनमार्गे वा (शृण्वतां देवानाम्) अस्माकं प्रार्थनां शृण्वतां देवानां मध्ये (कतमस्य कथा सुमन्तु नाम मनामहे) कतमस्य कथां सुमन्तव्यं नाम मन्यामहे स्मरामः (कः-नः-मृळाति) कः खलु-अस्मभ्यमभीष्टं ददाति “मृळाति दानकर्मा” [निरु० १०।१६] (कतमः-मयः-करत्) कतमः सुखं करोति (कतमः-ऊती-अभ्याववर्तति) कतमः-रक्षायै पुनः पुनः कल्याणसाधनायै-अस्मान् प्रति वर्तते ॥१॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    In the course of our life, which gracious name of the divinities that hear our prayer shall we adore and how? Who is kind to us first and most? Who brings us peace and pleasure? Who cares for us and turns to us with protection constantly?

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसाने हा विचार केला पाहिजे की या संसार यात्रेमध्ये किंवा जीवनयात्रेमध्ये खरा मित्र कोण आहे? कोणता देव मानण्या व स्मरण करण्यायोग्य आहे? कोण सुख देतो? कोण आमचा खरा रक्षक आहे? व जीवनाला आधार देतो? असे विवेचन करून जो इष्ट देव परमात्मा सिद्ध होतो त्याला शरण गेले पाहिजे. ॥१॥

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