ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 64/ मन्त्र 2
क्र॒तू॒यन्ति॒ क्रत॑वो हृ॒त्सु धी॒तयो॒ वेन॑न्ति वे॒नाः प॒तय॒न्त्या दिश॑: । न म॑र्डि॒ता वि॑द्यते अ॒न्य ए॑भ्यो दे॒वेषु॑ मे॒ अधि॒ कामा॑ अयंसत ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तु॒ऽयन्ति॑ । क्रत॑वः । हृ॒त्ऽसु । धी॒तयः॑ । वेन॑न्ति । वे॒नाः । प॒तय॑न्ति । आ । दिशः॑ । न । म॒र्डि॒ता । वि॒द्य॒ते॒ । अ॒न्यः । ए॒भ्यः॒ । दे॒वेषु॑ । मे॒ । अधि॑ । कामाः॑ । अ॒यं॒स॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
क्रतूयन्ति क्रतवो हृत्सु धीतयो वेनन्ति वेनाः पतयन्त्या दिश: । न मर्डिता विद्यते अन्य एभ्यो देवेषु मे अधि कामा अयंसत ॥
स्वर रहित पद पाठऋतुऽयन्ति । क्रतवः । हृत्ऽसु । धीतयः । वेनन्ति । वेनाः । पतयन्ति । आ । दिशः । न । मर्डिता । विद्यते । अन्यः । एभ्यः । देवेषु । मे । अधि । कामाः । अयंसत ॥ १०.६४.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 64; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
विषय - क्रतवो क्रतूयन्ति
पदार्थ -
[१] (क्रतवः) = हमारे कर्म संकल्प सदा (क्रतूयन्ति) = यज्ञादि उत्तम कर्मों के करने वाले होते हैं। हमारे में यज्ञादि कर्मों के संकल्प होते हैं और उन संकल्पों के अनुसार हमारे कर्म होते हैं । उन कर्मों को करते हुए (हृत्सु) = हमारे हृदयों में (धीतयः) = [ धीति] भक्ति की भावना होती है। इस धीति के कारण हमें उन कर्मों का गर्व नहीं होता। इस प्रकार गर्व रहित होकर कर्म करते हुए (वेना:) = [वेन्] ज्ञानी प्रभु-भक्त पुरुष (वेनन्ति) = उस प्रभु की ओर जाते हैं। (आदिशः) = प्रभु के आदेश ही (पतयन्ति) = इन्हें उन-उन कार्यों को करानेवाले होते हैं । प्रभु के आदेशों के अनुसार ही ये सारी क्रियाओं को करते हैं । [२] यह गय अनुभव करता है कि (एभ्यः) = उल्लिखित दिव्य वृत्तियों को छोड़कर (अन्यः) = अन्य कोई बात मर्डिता हमारे जीवन को सुखी करनेवाली (न विद्यते) = नहीं है । सो 'गय' निश्चय करता है कि (मे) = मेरी (कामाः) = इच्छाएँ (देवेषु अधि) = देवों के विषय में ही, दिव्यवृत्तियों के विषय में ही अयंसत नियमित होती हैं, अर्थात् मैं दिव्यगुणों को ही प्राप्त करने की कामना करता हूँ। इन दिव्यगुणों ने ही तो मेरे जीवन को सुखी बनाना है।
भावार्थ - भावार्थ-कर्म-संकल्प हमें यज्ञों में प्रवृत्त करें, हृदय में प्रभु भक्ति की भावना हो, मेधावी भक्त बनकर हम योगस्थ होकर कर्म करते हुए प्रभु की ओर चलें, प्रभु के आदेश ही हमें क्रियाओं में प्रेरित करनेवाले हों। ये दिव्य बातें ही हमारे जीवनों को सुखी करेंगे, सो हम इन्हीं को प्राप्त करने की कामना करें।
इस भाष्य को एडिट करें