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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 85/ मन्त्र 1
    ऋषिः - सूर्या सावित्री देवता - सोमः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    स॒त्येनोत्त॑भिता॒ भूमि॒: सूर्ये॒णोत्त॑भिता॒ द्यौः । ऋ॒तेना॑दि॒त्यास्ति॑ष्ठन्ति दि॒वि सोमो॒ अधि॑ श्रि॒तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒त्येन॑ । उत्त॑भिता । भूमिः॑ । सूर्ये॑ण । उत्त॑भिता । द्यौः । ऋ॒तेन॑ । आ॒दि॒त्याः । ति॒ष्ठ॒न्ति॒ । दि॒वि । सोमः॑ । अधि॑ । श्रि॒तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सत्येनोत्तभिता भूमि: सूर्येणोत्तभिता द्यौः । ऋतेनादित्यास्तिष्ठन्ति दिवि सोमो अधि श्रितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सत्येन । उत्तभिता । भूमिः । सूर्येण । उत्तभिता । द्यौः । ऋतेन । आदित्याः । तिष्ठन्ति । दिवि । सोमः । अधि । श्रितः ॥ १०.८५.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 85; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 20; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] 'सूर्या सावित्री' कहती है कि (सत्येन) = सत्य से (भूमिः) = यह पृथिवी (उत्तभिता) = थामी गयी है, अर्थात् पृथ्वी सत्य पर ही आश्रित है। संसार असत्य के आधार पर स्थित नहीं हो सकता । विशेषतः घर में पति-पत्नी का परस्पर सत्य व्यवहार ही उनके गृहस्थ जीवन को सुखी बना सकता है। असत्य से वे परस्पर आशंकित मनोवृत्तिवाले होंगे और गृहस्थ के मूलतत्त्व 'प्रेम' को खो बैंठेंगे। [२] (सूर्येण) = सूर्य से (द्यौ:) = द्युलोक (उत्तभिता) = थामा गया है। द्युलोक का द्युलोकत्व इस देदीप्यमान सूर्य के कारण ही है। सूर्य न हो तो द्युलोक भी इस पृथ्वीलोक की तरह ही हो जाएगा वहाँ प्रकाश न होगा। घर में प्रथम स्थान 'सत्य' का था, तो दूसरा स्थान 'ज्ञान' का है। इसके बिना घर का मापक ऊँचा नहीं उठ सकता। ज्ञान के अभाव में मनुष्य 'मनुष्य' ही नहीं रह जाता। उस घर का जीवन पशु तुल्य हो जाता है । [३] (आदित्याः) = अदिति के, अदीना देवमाता के पुत्र, अर्थात् देव (ऋतेन) = ऋत से, regnlerity [नियमितता] व यज्ञ से (तिष्ठन्ति) = आधारवाले होते हैं । जहाँ ऋत होता है, वहाँ घर के व्यक्ति देव बनते हैं। घर का तीसरा सूत्र 'ऋत' है। सब कार्यों को व्यवस्था से करना, ठीक समय व ठीक स्थान पर करना आवश्यक ही है। साथ ही घर में यज्ञों का होना भी उतना ही आवश्यक है । घर के सब व्यक्तियों की मनोवृत्ति यज्ञिय बने, तो घर पनपता है । [४] (सोमः) = सोम [= वीर्य] (दिवि) = ज्ञान में (अधिश्रितः) = आश्रित है, अर्थात् सोम के रक्षण के लिये स्वाध्याय की वृत्ति आवश्यक है। यह सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है और इस प्रकार शरीर में ही उपयुक्त होकर व्यर्थ में व्ययित नहीं होता । सोम का रक्षण करनेवाले पति-पत्नी ही उत्तम सन्तानों को जन्म दे पाते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ - उत्तम घर वह है जहाँ — [क] सत्य है, [ख] ज्ञान- प्रवणता है [सूर्य, [ग] ऋत का पालन होता है और [घ] सोम का रक्षण होता है ।

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