साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
ऋषिः - विश्वसामा आत्रेयः
देवता - अग्निः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
प्र वि॑श्वसामन्नत्रि॒वदर्चा॑ पाव॒कशो॑चिषे। यो अ॑ध्व॒रेष्वीड्यो॒ होता॑ म॒न्द्रत॑मो वि॒शि ॥१॥
स्वर सहित पद पाठप्र । वि॒श्व॒ऽसा॒म॒न् । अ॒त्रि॒ऽवत् । अर्च॑ । पा॒व॒कऽशो॑चिषे । यः । अ॒ध्व॒रेषु॑ । ईड्यः॑ । होता॑ । म॒न्द्रऽत॑मः । वि॒शि ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र विश्वसामन्नत्रिवदर्चा पावकशोचिषे। यो अध्वरेष्वीड्यो होता मन्द्रतमो विशि ॥१॥
स्वर रहित पद पाठप्र। विश्वऽसामन्। अत्रिऽवत्। अर्च। पावकऽशोचिषे। यः। अध्वरेषु। ईड्यः। होता। मन्द्रऽतमः। विशि ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
विषय - होता-मन्द्रतमः
पदार्थ -
(१) हे (विश्वसामन्) = शरीर, मन व मस्तिष्क में 'काम-क्रोध-लोभ' के विनाश के द्वारा शान्ति को उत्पन्न करनेवाले! तू (अत्रि-वत्) = 'काम-क्रोध-लोभ' से रहित पुरुष की तरह (पावकशोचिषे) = पवित्र दीप्तिवाले प्रभु के लिये (प्र अर्चा) = पूजा को करनेवाला हो । तू वासनाओं को विनष्ट करने का प्रयत्न करता हुआ प्रभु-पूजन करनेवाला बन । (२) उस प्रभु का तू पूजन कर (यः) = जो कि (अध्वरेषु) = हिंसारहित कर्मों में (ईड्यः) = उपासना के योग्य हैं। (होता) = सब हव्य पदार्थों के देनेवाले हैं और (विशि) = सब प्रजाओं में (मन्द्रतमः) = स्तुत्यतम हैं।
भावार्थ - भावार्थ- हम काम-क्रोध-लोभ से ऊपर उठकर प्रभु का पूजन करें, प्रभु यज्ञों में पूज्य होते हैं, सब कुछ देनेवाले हैं, स्तुत्यतम हैं।
इस भाष्य को एडिट करें