ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 28/ मन्त्र 3
तव॒ प्रणी॑तीन्द्र॒ जोहु॑वाना॒न्त्सं यन्नॄन्न रोद॑सी नि॒नेथ॑। म॒हे क्ष॒त्राय॒ शव॑से॒ हि ज॒ज्ञेऽतू॑तुजिं चि॒त्तूतु॑जिरशिश्नत् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठतव॑ । प्रऽनी॑ती । इ॒न्द्र॒ । जोहु॑वानान् । सम् । यत् । नॄन् । न । रोद॑सी॒ इति॑ । नि॒नेथ॑ । म॒हे । क्ष॒त्राय॑ । शव॑से । हि । ज॒ज्ञे । अतू॑तुजिम् । चि॒त् । तूतु॑जिः । अ॒शि॒श्न॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तव प्रणीतीन्द्र जोहुवानान्त्सं यन्नॄन्न रोदसी निनेथ। महे क्षत्राय शवसे हि जज्ञेऽतूतुजिं चित्तूतुजिरशिश्नत् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठतव। प्रऽनीती। इन्द्र। जोहुवानान्। सम्। यत्। नॄन्। न। रोदसी इति। निनेथ। महे। क्षत्राय। शवसे। हि। जज्ञे। अतूतुजिम्। चित्। तूतुजिः। अशिश्नत् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 28; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
विषय - राजा विद्रोहियों को कठिन दण्ड दे
पदार्थ -
पदार्थ - (रोदसी न) = सूर्य जैसे आकाश और पृथ्वी को मार्ग पर चलाता है वैसे ही (यत्) = जो पुरुष (जोहुवानान्) = निरन्तर पुकारनेवाले और बुलाये गये, (नॄन्) = नायक पुरुषों को (सं निनेथ) = सन्मार्ग पर चलाता है और जो (तूतुजि:) = शत्रु नाशक होकर (अतूतुजिं) = अहिंसक प्रजा और कर न देनेवाले शत्रु का (अशिश्नत्) = शासन करता है वह, तू हि निश्चय से महे क्षत्राय-बड़े क्षात्र बल और महे शवसे-बड़े सैन्य बल के सञ्चालन के लिये जज्ञे-समर्थ है।
भावार्थ - भावार्थ - राजा को योग्य है कि वह दण्ड विधान को कठोरता के साथ राज्य में लागू करे। दण्ड के बिना शासन कभी भी नहीं चल सकता। जो कर न देनेवाले, देशद्रोही तथा भ्रष्टाचार करनेवाले हैं राजा उन्हें कठोर दण्ड देवे।
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