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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 49/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - आपः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यासु॒ राजा॒ वरु॑णो॒ यासु॒ सोमो॒ विश्वे॑ दे॒वा यासूर्जं॒ मद॑न्ति। वै॒श्वा॒न॒रो यास्व॒ग्निः प्रवि॑ष्ट॒स्ता आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यासु॑ । राजा॑ । वरु॑णः । यासु॑ । सोमः॑ । विश्वे॑ । दे॒वाः । यासु॑ । ऊर्ज॑म् । मद॑न्ति । वै॒श्वा॒न॒रः । यासु॑ । अ॒ग्निः । प्रऽवि॑ष्टः । ताः । आपः॑ । दे॒वीः । इ॒ह । माम् । अ॒व॒न्तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यासु राजा वरुणो यासु सोमो विश्वे देवा यासूर्जं मदन्ति। वैश्वानरो यास्वग्निः प्रविष्टस्ता आपो देवीरिह मामवन्तु ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यासु। राजा। वरुणः। यासु। सोमः। विश्वे। देवाः। यासु। ऊर्जम्। मदन्ति। वैश्वानरः। यासु। अग्निः। प्रऽविष्टः। ताः। आपः। देवीः। इह। माम्। अवन्तु ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 49; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    पदार्थ - (यासु) = जिन जलों वा प्रजाओं में (वरुणः) = वरण किया गया पुरुष (राजा) = राजा बनता है, (यासु सोमः) = जिनके बीच ओषधि तथा सौम्य विद्वान् हैं, (यासु) = जिनके बल पर (विश्वे देवा:) = सब मनुष्य (ऊर्जम् मदन्ति) = अन्न से तृप्ति और बल प्राप्त करते हैं (यातु) = जिनके बीच (वैश्वानरः) = समस्त मनुष्यों का हितकारी (अग्नि:) = तेजस्वी नेता (प्रविष्टः) = प्रविष्ट है (ताः आपः देवीः) = वे दिव्य गुण - युक्त जल और प्रजाजन (माम् इह अवन्तु) = मेरी इस लोक में रक्षा करें।

    भावार्थ - भावार्थ-प्रजा द्वारा वरण किया हुआ राजा प्रजा के हित के लिए योग्य चिकित्सकों, उत्तम विद्वानों, तेजस्वी नायकों तथा कुशल प्रशासकों की नियुक्ति करे। जिससे प्रजा राजा की प्रिय तथा का प्रिय होवे। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और मित्रावरुण, अग्नि, विश्वे देवा व नद्य देवता हैं।

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