ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 95/ मन्त्र 5
इ॒मा जुह्वा॑ना यु॒ष्मदा नमो॑भि॒: प्रति॒ स्तोमं॑ सरस्वति जुषस्व । तव॒ शर्म॑न्प्रि॒यत॑मे॒ दधा॑ना॒ उप॑ स्थेयाम शर॒णं न वृ॒क्षम् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मा । जुह्वा॑नाः । यु॒ष्मत् । आ । नमः॑ऽभिः । प्रति॑ । स्तोम॑म् । स॒र॒स्व॒ति॒ । जु॒ष॒स्व॒ । तव॑ । शर्म॑न् । प्रि॒यऽत॑मे । दधा॑नाः । उप॑ । स्थे॒या॒म॒ । श॒र॒णम् । न । वृ॒क्षम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा जुह्वाना युष्मदा नमोभि: प्रति स्तोमं सरस्वति जुषस्व । तव शर्मन्प्रियतमे दधाना उप स्थेयाम शरणं न वृक्षम् ॥
स्वर रहित पद पाठइमा । जुह्वानाः । युष्मत् । आ । नमःऽभिः । प्रति । स्तोमम् । सरस्वति । जुषस्व । तव । शर्मन् । प्रियऽतमे । दधानाः । उप । स्थेयाम । शरणम् । न । वृक्षम् ॥ ७.९५.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 95; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
विषय - स्त्री के कर्त्तव्य ४
पदार्थ -
पदार्थ- हे (सरस्वति) = ज्ञान युक्त विदुषी ! ज्ञानमय प्रभो ! तू (स्तोमं प्रति जुषस्व) = स्तुत्यवचन को प्रेम से स्वीकार कर। हम (नमोभिः) = विनय-वचनों सहित (युष्मत् आजुह्वाना) = तुमसे ग्राह्य पदार्थ लेते हुए (तव प्रियतमे शर्मन्) = तेरे प्रियतम गृह में स्वयं को (दधानाः) = रखते हुए (वृक्षं न शरणं) = वृक्ष तुल्य शरण दायक (उप रथेयाम) = तेरे पास आयें।
भावार्थ - भावार्थ- विदुषी स्त्री परिजनों के वचनों को ध्यान से सुने। घर में आए हुए अतिथि या भिक्षुकों का मीठे वचनों से सत्कार करते हुए उनके लिए आवश्यक पदार्थों का दान करे।
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