ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 77/ मन्त्र 1
ज॒ज्ञा॒नो नु श॒तक्र॑तु॒र्वि पृ॑च्छ॒दिति॑ मा॒तर॑म् । क उ॒ग्राः के ह॑ शृण्विरे ॥
स्वर सहित पद पाठज॒ज्ञा॒नः । नु । श॒तऽक्र॑तुः । वि । पृ॒च्छ॒त् । इति॑ । मा॒तर॑म् । के । उ॒ग्राः । के । ह॒ । शृ॒ण्वि॒रे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
जज्ञानो नु शतक्रतुर्वि पृच्छदिति मातरम् । क उग्राः के ह शृण्विरे ॥
स्वर रहित पद पाठजज्ञानः । नु । शतऽक्रतुः । वि । पृच्छत् । इति । मातरम् । के । उग्राः । के । ह । शृण्विरे ॥ ८.७७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 77; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
विषय - के उग्राः ?
पदार्थ -
[१] यहाँ काव्यमय भाषा में उत्पन्न होता हुआ बालक माता से पूछता है और माता उसे अगले मन्त्र में उतार देती है। वस्तुतः माता ही लोरियाँ देते हुए इस प्रकार की ही बात प्रश्नोत्तर के ढंग से करती है। (जज्ञान: नु) = प्रादुर्भूत होता हुआ ही (शतक्रतुः) = ये शतवर्ष पर्यन्त शक्ति व प्रज्ञानवाला बालक, (मातरम्) = माता से (इति) = यह (वि पृच्छात्) = पूछता है कि ये (उग्राः) = कौन भयंकर शत्रु हैं ? (के) = कौन (ह) = निश्चय से शृण्विरे लोक में उग्रशत्रु सुने जाते हैं? अर्थात् मैंने इस जीवन में किन भयंकर शत्रुओं का सामना करना है? [२] इस प्रश्न को सुनकर माता उसे अगले मन्त्र में उत्तर देती है कि इन-इन शत्रुओं को तूने जीतना है।
भावार्थ - भावार्थ- माता उत्पन्न हुए बालक के साथ प्रारम्भ से ही इस प्रकार बातचीत करे कि बालक पर सुन्दर प्रभाव पड़े, वह किन्हीं भी वासनारूप शत्रुओं का शिकार न हो जाये।
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