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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 12/ मन्त्र 2
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भि विप्रा॑ अनूषत॒ गावो॑ व॒त्सं न मा॒तर॑: । इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । विप्राः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । गावः॑ । व॒त्सम् । न । मा॒तरः॑ । इन्द्र॑म् । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि विप्रा अनूषत गावो वत्सं न मातर: । इन्द्रं सोमस्य पीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । विप्राः । अनूषत । गावः । वत्सम् । न । मातरः । इन्द्रम् । सोमस्य । पीतये ॥ ९.१२.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 38; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [१] (विप्राः) = [वि + प्रा पूरणे] सोमरक्षण के द्वारा विशेषरूप से अपना पूरण करनेवाले लोग (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली, सर्वशक्तिमान् प्रभु को (अभि अनूषत) = दोनों ओर दिन के प्रारम्भ में व दिन के अन्त में प्रातः - सायं स्तुत करते हैं । प्रभु-स्तुति से ही जीवन को प्रारम्भ करते हैं, प्रभु स्तुति पर ही दिन की क्रियाओं को समाप्त करते हैं। [२] ये लोग इस प्रकार प्रभु का स्तवन करते हैं, (न) = जैसे कि (मातरः गाव:) = दुधार धेनुएँ (वत्सम्) = उत्पन्न हुए हुए बछड़े को पुकारती हैं । दुधार गौ का बछड़े के प्रति जो प्रेम होता है उसी प्रकार प्रभु के प्रति प्रेमवाले होते हुए हम प्रभु के निष्काम प्रिय भक्त बनें। यह प्रभु-भक्ति (सोमस्य पीतये) = सोम के पान के लिये होती है । इस भक्ति के द्वारा हम सोम का शरीर में रक्षण करनेवाले बनते हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ - हम प्रातः - सायं प्रभु का स्मरण करें। यह स्मरण हमें सोम के रक्षण में सहायक हो ।

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