ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 12/ मन्त्र 2
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒भि विप्रा॑ अनूषत॒ गावो॑ व॒त्सं न मा॒तर॑: । इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । विप्राः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । गावः॑ । व॒त्सम् । न । मा॒तरः॑ । इन्द्र॑म् । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि विप्रा अनूषत गावो वत्सं न मातर: । इन्द्रं सोमस्य पीतये ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । विप्राः । अनूषत । गावः । वत्सम् । न । मातरः । इन्द्रम् । सोमस्य । पीतये ॥ ९.१२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 38; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 38; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
तमीश्वरं लब्धुम् (गावः) इन्द्रियाणि (मातरः वत्सम् न) यथा मातॄः वत्स आश्रयते तद्वद् आश्रयन्ते तथैव च (विप्राः) विज्ञानिनः (सोमस्य पीतये) सौम्यस्वभावं निर्मातुं (इन्द्रम्) परमात्मानं (अभ्यनूषत) विभूषयन्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
उस परमात्मा को पाने के लिये (गावः) इन्द्रियें (मातरः वत्सम् न) जैसे माता को बछड़ा आश्रयण करता है, इसी प्रकार आश्रयण करती है, उसी प्रकार (सोमस्य पीतये) विज्ञानी लोग (इन्द्रम्) सौम्य स्वभाव को बनाने के लिये (अभि अनूषत) परमात्मा को विभूषित करते हैं ॥२॥
भावार्थ
जब तक पुरुष सौम्य स्वभाव परमात्मा का आश्रयण नहीं करता, तब तक उसके स्वभाव में सौम्य भाव नहीं आ सकते और उसका आश्रयण करना साधारण रीति से हो तो कोई अपूर्वता उत्पन्न नहीं कर सकता। जब पुरुष परमात्मा में इस प्रकार अनुरक्त होता है, जैसा कि वत्स अपनी माता में अनुरक्त होते हैं अथवा इन्द्रिय अपने शब्दादि विषयों में अनुरक्त होती है, इस प्रकार की अनुरक्ति के विना परमात्मा के भावों को पुरुष कदापि ग्रहण नहीं कर सकता ॥२॥
विषय
प्रातः- सायं प्रभु-स्तवन
पदार्थ
[१] (विप्राः) = [वि + प्रा पूरणे] सोमरक्षण के द्वारा विशेषरूप से अपना पूरण करनेवाले लोग (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली, सर्वशक्तिमान् प्रभु को (अभि अनूषत) = दोनों ओर दिन के प्रारम्भ में व दिन के अन्त में प्रातः - सायं स्तुत करते हैं । प्रभु-स्तुति से ही जीवन को प्रारम्भ करते हैं, प्रभु स्तुति पर ही दिन की क्रियाओं को समाप्त करते हैं। [२] ये लोग इस प्रकार प्रभु का स्तवन करते हैं, (न) = जैसे कि (मातरः गाव:) = दुधार धेनुएँ (वत्सम्) = उत्पन्न हुए हुए बछड़े को पुकारती हैं । दुधार गौ का बछड़े के प्रति जो प्रेम होता है उसी प्रकार प्रभु के प्रति प्रेमवाले होते हुए हम प्रभु के निष्काम प्रिय भक्त बनें। यह प्रभु-भक्ति (सोमस्य पीतये) = सोम के पान के लिये होती है । इस भक्ति के द्वारा हम सोम का शरीर में रक्षण करनेवाले बनते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - हम प्रातः - सायं प्रभु का स्मरण करें। यह स्मरण हमें सोम के रक्षण में सहायक हो ।
विषय
माता और वत्सवत् शिष्य जनों का गुरु जनों से सम्बन्ध।
भावार्थ
(गावः मातरः वत्सं न) गोमाताएं जिस प्रकार बछड़े को देख कर उसे प्रेम से पुकारती हैं उसी प्रकार (सोमस्य पीतये) ब्रह्मचारी के पालन के लिये (विप्राः) विद्वान् जन (वत्सं इन्द्रं) उत्तम ज्ञान के उपदेष्टा वा अपने अधीन ब्रह्मचारियों को रखने वाले ज्ञानदर्शी विद्वान् को लक्ष्य कर (अभि अनूषत) उत्तम स्तुति करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ६–८ गायत्री। ३– ५, ९ निचृद् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Just as mother cows low for the calf so do the sages invoke and glorify Indra, lord of soma, beauty, joy and excellence, so that the lord may bless them with his presence and be happy with their songs of love and adoration.
मराठी (1)
भावार्थ
जो पर्यंत पुरुष सौम्य स्वभावाच्या परमेश्वराचा आश्रय घेत नाही तोपर्यंत त्याच्या स्वभावात सौम्य भाव येऊ शकत नाही व त्याचा आश्रय सर्वसारधारणपणे घेतला तर त्यात कोणतीही विलक्षणता येऊ शकत नाही. जेव्हा पुरुष परमात्म्यामध्ये अनुरक्त होतो, जसा वत्स आपल्या मातेत अनुरक्त असतो किंवा इंद्रिये आपल्या शब्द इत्यादी विषयात अनुरक्त असतात. या प्रकारच्या अनुरक्तीशिवाय पुरुष परमात्म्याचे भाव कधीही ग्रहण करू शकत नाही. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal