ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 42/ मन्त्र 3
वा॒वृ॒धा॒नाय॒ तूर्व॑ये॒ पव॑न्ते॒ वाज॑सातये । सोमा॑: स॒हस्र॑पाजसः ॥
स्वर सहित पद पाठव॒वृ॒धा॒नाय॑ । तूर्व॑ये । पव॑न्ते । वाज॑ऽसातये । सोमाः॑ । स॒हस्र॑ऽपाजसः ॥
स्वर रहित मन्त्र
वावृधानाय तूर्वये पवन्ते वाजसातये । सोमा: सहस्रपाजसः ॥
स्वर रहित पद पाठववृधानाय । तूर्वये । पवन्ते । वाजऽसातये । सोमाः । सहस्रऽपाजसः ॥ ९.४२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 42; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
विषय - अनन्त शक्तिवाले सोम
पदार्थ -
[१] (सहस्रपाजसः) = अनन्त शक्तिवाले (सोमा:) = सोम (पवन्ते) = हमें प्राप्त होते हैं । वस्तुतः शरीर में सुरक्षित होकर ये हमें अनन्त ही शक्ति को प्राप्त कराते हैं। [२] हमें प्राप्त हुए-हुए ये सोम (वाजसातये) = उस शक्ति के साधक संग्राम के लिये होते हैं, जो कि (वावृधानाय) = हमें निरन्तर बढ़ानेवाला है तथा (तूर्वये) = काम आदि शत्रुओं का संहार करनेवाला है । अध्यात्म संग्राम ' वाजसाति' है, यह हमारी शक्ति का वर्धक है। इस संग्राम को करते हुए हम प्रतिदिन आगे बढ़ते हैं और अपने ध्वंसक शत्रुओं का ध्वंस कर पाते हैं ।
भावार्थ - भावार्थ- सुरक्षित हुए हुए सोम हमें अध्यात्म-संग्राम में विजयी बनाते हैं ।
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