ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 42/ मन्त्र 3
वा॒वृ॒धा॒नाय॒ तूर्व॑ये॒ पव॑न्ते॒ वाज॑सातये । सोमा॑: स॒हस्र॑पाजसः ॥
स्वर सहित पद पाठव॒वृ॒धा॒नाय॑ । तूर्व॑ये । पव॑न्ते । वाज॑ऽसातये । सोमाः॑ । स॒हस्र॑ऽपाजसः ॥
स्वर रहित मन्त्र
वावृधानाय तूर्वये पवन्ते वाजसातये । सोमा: सहस्रपाजसः ॥
स्वर रहित पद पाठववृधानाय । तूर्वये । पवन्ते । वाजऽसातये । सोमाः । सहस्रऽपाजसः ॥ ९.४२.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 42; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सहस्रपाजसः सोमाः) अनन्तशक्तिः परमात्मा (वावृधानाय) स्वाभ्युदयाभिलाषिभ्यः (तूर्वये) दक्षेभ्यः कर्मयोगिभ्यः (वाजसातये) ऐश्वर्यं प्राप्तुं (पवन्ते) हृदये ज्ञानमुत्पाद्य तान् पवित्रयति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सहस्रपाजसः सोमाः) अनन्तशक्तिसम्पन्न परमात्मा (वावृधानाय) अपनी अभ्युन्नति की इच्छा करनेवाले (तूर्वये) दक्षतायुक्त कर्मयोगियों की (वाजसातये) ऐश्वर्यप्राप्ति के लिये (पवन्ते) उनके हृदयों में ज्ञान उत्पन्न करके उनको पवित्र करता है ॥३॥
भावार्थ
इस संसार में सर्वशक्तिमान् एकमात्र परमात्मा से सब प्रकार के अभ्युदय की प्रार्थना करनी चाहिये। जो लोग उक्त परमात्मा से अभ्युदय की प्रार्थना करके उद्योगी बनते हैं, वे अवश्यमेव अभ्युदय को प्राप्त होते हैं ॥३॥
विषय
अनन्त शक्तिवाले सोम
पदार्थ
[१] (सहस्रपाजसः) = अनन्त शक्तिवाले (सोमा:) = सोम (पवन्ते) = हमें प्राप्त होते हैं । वस्तुतः शरीर में सुरक्षित होकर ये हमें अनन्त ही शक्ति को प्राप्त कराते हैं। [२] हमें प्राप्त हुए-हुए ये सोम (वाजसातये) = उस शक्ति के साधक संग्राम के लिये होते हैं, जो कि (वावृधानाय) = हमें निरन्तर बढ़ानेवाला है तथा (तूर्वये) = काम आदि शत्रुओं का संहार करनेवाला है । अध्यात्म संग्राम ' वाजसाति' है, यह हमारी शक्ति का वर्धक है। इस संग्राम को करते हुए हम प्रतिदिन आगे बढ़ते हैं और अपने ध्वंसक शत्रुओं का ध्वंस कर पाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित हुए हुए सोम हमें अध्यात्म-संग्राम में विजयी बनाते हैं ।
विषय
ऐश्वर्यवान् बीर राजाओं का युद्ध के लिये प्रयाण।
भावार्थ
(सहस्र-पाजसः) सहस्रों बलों वाले (सोमाः) ऐश्वर्यवान् राजा गण (वाजसातये) ऐश्वर्य, संग्राम करने के लिये और (वावृधानाय तूर्वये) बढ़ते और हिंसाकारी वेगवान् संग्राम के लिये (पवन्ते) जाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेध्यातिथिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ निचृद् गायत्री। ३, ४, ६ गायत्री। ५ ककुम्मती गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Mighty powerful streams of Soma, full of thousand-fold vigour and promise flow for the karma- yogi, progressive man of initiative, creative ambition and efficiency of action, sanctifying and preparing him for the achievement of his goal.
मराठी (1)
भावार्थ
या जगात एकमात्र सर्वशक्तिमान परमात्म्याची सर्व प्रकारच्या अभ्युदयासाठी प्रार्थना केली पाहिजे. जे लोक परमात्म्याची अभ्युदयासाठी प्रार्थना करून उद्योगी बनतात त्यांचा अवश्य अभ्युदय होतो. ॥३॥
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