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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 42/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    गोम॑न्नः सोम वी॒रव॒दश्वा॑व॒द्वाज॑वत्सु॒तः । पव॑स्व बृह॒तीरिष॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गोऽम॑त् । नः॒ । सो॒म॒ । वी॒रऽव॑त् । अश्व॑वत् । वाज॑ऽवत् । सु॒तः । पव॑स्व । बृह॒तीः । इषः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोमन्नः सोम वीरवदश्वावद्वाजवत्सुतः । पवस्व बृहतीरिष: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गोऽमत् । नः । सोम । वीरऽवत् । अश्ववत् । वाजऽवत् । सुतः । पवस्व । बृहतीः । इषः ॥ ९.४२.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 42; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! भवान् (गोमत्) गवाद्यैश्वर्येण युक्तः (वीरवत्) वीरैः सहितः (अश्वावत् वाजवत्) अश्वादिभिः अन्नादिभिश्च युक्तोऽस्ति त्वं (बृहतीः इषः) स्वोपासकेभ्यो महत् धनं (पवस्व) देहि ॥६॥ इति द्वाचत्वारिंशत्तमं सूक्तं द्वात्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! आप (गोमत्) गवादि ऐश्वर्यों से युक्त तथा (वीरवत्) वीरयुक्त (अश्वावत् वाजवत्) अश्वादियुक्त और अन्नादि ऐश्वर्ययुक्त हैं (बृहतीः इषः) आप अपने उपासकों को महान् ऐश्वर्य दीजिये ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा ही वीर धर्म का दाता है। उसकी कृपा से वीरपुरुष उत्पन्न होकर दुष्टों का दलन और श्रेष्ठों का परिपालन करते हैं ॥६॥३२॥ यह ४२ वाँ सूक्त और ३२ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    'गति व शक्ति' सम्पन्न

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (सुतः) = उत्पन्न हुई हुई तू (नः) = हमारे लिये (बृहती:) = वृद्धि की कारणभूत (इषः) = प्रेरणाओं को (पवस्व) = प्राप्त करा। इस सोम के सुरक्षण से हृदय पवित्र होता है । पवित्र हृदय में प्रभु - प्रेरणा सुनाई पड़ती है । [२] यह प्रभु - प्रेरणा (गोमत्) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाली होती है, (वीरवत्) = यह हमें वीरता प्राप्त कराती है। अथवा उत्तम वीर सन्तानों के देनेवाली होती है । (अश्वावत्) = यह प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाली है तथा (वाजवत्) = गति व शक्तिवाली है [ वज् गतौ ] ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण हमें प्रभु प्रेरणा के सुननेवाला बनाता है। इस प्रभु प्रेरणा से हम प्रशस्त इन्द्रियोंवाले वीर व 'शक्ति व गति - सम्पन्न' बन पाते हैं । मेध्यातिथि ही कहते हैं-

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    विषय

    अभिषिक्त के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (सोम) शासक ! तू (नः बृहतीः इषः) बहुत अन्न, और सुख, वृष्टियां, उत्तम २ अभिलाषाएं (पवस्व) हमें प्रदान कर और (नः) हमें (गोमत् वीरवत् अश्ववत् वाजवत्) गौओं, वीरों, अश्वों, बलों, ऐश्वर्यों से युक्त राष्ट्र (सुतः) स्वयं अभिषिक्त होकर प्राप्त करा। इति द्वात्रिंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यातिथिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ निचृद् गायत्री। ३, ४, ६ गायत्री। ५ ककुम्मती गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, adored and glorified in self-realisation, let streams of pure abundant food, energy, possibilities and achievements flow for us, rich in lands and cows, honour and culture, noble progeny and brave warriors, horses, speedy progress and victories, vibrant initiative and perfect fulfilment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा वीरधर्माचा दाता आहे. त्याच्या कृपेने वीरपुरुष उत्पन्न होतात व दुष्टांचे दलन आणि वेदांचे परिपालन करतात. ॥६॥

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