ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 49/ मन्त्र 2
तया॑ पवस्व॒ धार॑या॒ यया॒ गाव॑ इ॒हागम॑न् । जन्या॑स॒ उप॑ नो गृ॒हम् ॥
स्वर सहित पद पाठतया॑ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । यया॑ । गावः॑ । इ॒ह । आ॒ऽगम॑न् । जन्या॑सः । उप॑ । नः॒ । गृ॒हम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम् ॥
स्वर रहित पद पाठतया । पवस्व । धारया । यया । गावः । इह । आऽगमन् । जन्यासः । उप । नः । गृहम् ॥ ९.४९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 49; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
विषय - जन्यासः गावः
पदार्थ -
[१] हे सोम ! तू (तया धारया) = अपनी उस धारणशक्ति के साथ (पवस्व) = हमें प्राप्त हो, (यया) = जिस से (गाव:) = वेदवाणियाँ (हि) = यहाँ इस जीवन में आगमन् हमें प्राप्त हों । [२] (जन्यास:) = [जननं जनः, तत्र उत्तमाः] सद्गुणों के विकास में उत्तम ये वेदवाणियाँ (नः) = हमारे (गृहम्) = इस शरीररूप घर में (उप) = समीपता से प्राप्त हों। सोमरक्षण से बुद्धि तीव्र होती है और हम ज्ञान की वाणियों को अपनाने के लिये तैयार होते हैं।
भावार्थ - भावार्थ- सोमरक्षण से हमें वे वेदवाणियाँ प्राप्त होती हैं जो कि हमारे जीवनों में सद्गुणों को जन्म देनेवाली होती हैं।
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