Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1018
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
4
त्वं꣡ द्यां च꣢꣯ महिव्रत पृथि꣣वीं꣡ चाति꣢꣯ जभ्रिषे । प्र꣡ति꣢ द्रा꣣पि꣡म꣢मुञ्चथाः प꣡व꣢मान महित्व꣣ना꣢ ॥१०१८॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । द्याम् । च꣣ । महिव्रत । महि । व्रत । पृथिवी꣢म् । च꣣ । अ꣡ति꣢꣯ । ज꣣भ्रिषे । प्र꣡ति꣢꣯ । द्रा꣣पि꣢म् । अ꣣मुञ्चथाः । प꣡व꣢꣯मान । म꣣हित्वना꣢ ॥१०१८॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं द्यां च महिव्रत पृथिवीं चाति जभ्रिषे । प्रति द्रापिममुञ्चथाः पवमान महित्वना ॥१०१८॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । द्याम् । च । महिव्रत । महि । व्रत । पृथिवीम् । च । अति । जभ्रिषे । प्रति । द्रापिम् । अमुञ्चथाः । पवमान । महित्वना ॥१०१८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1018
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - पवमान-महिव्रत
पदार्थ -
१. हे (महिव्रत) = महनीय [प्रशंसनीय] व महान् व्रतोंवाले (पवमान) = सबको पवित्र करनेवाले प्रभो ! (त्वम्) = आप (द्यां च पृथिवीं च) = द्युलोक व पृथिवीलोक को (अतिजभिषे) = अतिशयेन धारण करते हो - बहुत ही सुन्दर ढंग से सारे संसार का पालन-पोषण करते हो । २. हे (पवमान) प्रभो ! (महित्वना) = आप अपनी महिमा से (द्रापिम्) = कुत्सित गति को [द्रा कुत्सायां गतौ] प्रति (अमुञ्चथाः) = छुड़ाते हो- दूर करते हो ।
२. १. प्रभु के कर्म महान् हैं । वे 'महिव्रत' हैं— सारे ब्रह्माण्ड का पालन उसका सर्वमहान् कर्म है । वे प्रभु पवमान हैं—पवित्र करनेवाले हैं। वे अपनी महिमा से भक्तों को अशुभों से दूर करते हैं । प्रभु का भक्त [रेभ] प्रभु की प्रेरणा को सुनता है [सूनु] और ज्ञानी [काश्यप] बनकर पवित्र कर्मोंवाला हो जाता है ।
भावार्थ -
प्रभु ही सबका धारण करते हैं। हमारा धारण भी वही करेंगे और हमें पाप से पृथक् करेंगे।
टिप्पणी -
सूचना – ‘प्रभु धारण करते हैं और कुत्सित गति को दूर करते हैं', इस मन्त्र क्रम के द्वारा यह सूचना हो रही है कि पापों से पृथक् होने के लिए आवश्यक है कि हम निर्माण व धारण के कार्यों में लगे रहें । संक्षेप में 'पवमान' वही बनता है जो 'महिव्रत' होता है ।