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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1048
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
स꣢ना꣣ ज्यो꣢तिः꣣ स꣢ना꣣ स्वा꣢३꣱र्वि꣡श्वा꣢ च सोम꣣ सौ꣡भ꣢गा । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०४८॥
स्वर सहित पद पाठस꣡न꣢꣯ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । सन꣢ । स्वः꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯ । च꣣ । सोम । सौ꣡भ꣢꣯गा । सौ । भ꣣गा । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०४८॥
स्वर रहित मन्त्र
सना ज्योतिः सना स्वा३र्विश्वा च सोम सौभगा । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०४८॥
स्वर रहित पद पाठ
सन । ज्योतिः । सन । स्वः । विश्वा । च । सोम । सौभगा । सौ । भगा । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०४८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1048
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - ज्योति, स्वः, सौभग
पदार्थ -
हे (सोम) = सोम [वीर्य] की रक्षा के द्वारा दर्शन का विषय बने हुए ब्रह्माण्ड के निर्माता प्रभो ! आप हमें १. (ज्योतिः) = प्रकाश (सना) = दीजिए। आपकी कृपा से हम सदा प्रकाश में विचरें । आत्मस्वरूप को जानें व जीवन-यात्रा के मार्ग को स्पष्टतया देखनेवाले हों । २. (स्वः) = आत्म-प्राप्तिरूप रमणीय सुख दीजिए। प्रकाश में विचरते हुए हम जीवन-यात्रा को पूर्ण करके मोक्ष-सुख को प्राप्त करनेवाले हों । ३. (च) = और इस जीवन में भी (विश्वा सौभगा) = सब सौभाग्यों को हमें प्राप्त कराइए । [सौभग=Happiness and prosperity] हमारे जीवन सुख व समृद्धि से युक्त हो । संक्षेप में हमारा जीवन ज्योतिर्मय हो। ज्योति में जीवन-यात्रा को पूरा करते हुए हम जहाँ मोक्ष-सुख [स्व:] व निःश्रेयस का लाभ करें वहाँ हमारा यह ऐहिक जीवन भी सुख-समृद्धि-सम्पन्न हो ((अथ नः वस्यसः कृधि)) = और हम उत्कृष्ट जीवनवाले बनें ।
भावार्थ -
सोम की कृपा से हमें प्रकाश, प्रकृष्ट आनन्द तथा सुख-समृद्धि प्राप्त हो ।
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