Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1048
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
28
स꣢ना꣣ ज्यो꣢तिः꣣ स꣢ना꣣ स्वा꣢३꣱र्वि꣡श्वा꣢ च सोम꣣ सौ꣡भ꣢गा । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०४८॥
स्वर सहित पद पाठस꣡न꣢꣯ । ज्यो꣡तिः꣢꣯ । सन꣢ । स्वः꣢ । वि꣡श्वा꣢꣯ । च꣣ । सोम । सौ꣡भ꣢꣯गा । सौ । भ꣣गा । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०४८॥
स्वर रहित मन्त्र
सना ज्योतिः सना स्वा३र्विश्वा च सोम सौभगा । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०४८॥
स्वर रहित पद पाठ
सन । ज्योतिः । सन । स्वः । विश्वा । च । सोम । सौभगा । सौ । भगा । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०४८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1048
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
आगे पुनः जीवात्मा को उद्बोधन है।
पदार्थ
हे (सोम) अग्रेगामी जीवात्मन् ! तू (ज्योतिः) दिव्य प्रकाश को (सन) प्राप्त कर, (स्वः) ब्रह्मानन्द को (सन) प्राप्त कर, (विश्वा च) और सब (सौभगा) सौभाग्यों को (सन) प्राप्त कर। (अथ) और उसके अनन्तर (नः) हमें भी (वस्यसः) अतिशय ऐश्वर्यवान् (कृधि) कर ॥२॥
भावार्थ
जीवात्मा ने सबसे उत्कृष्ट मानव-शरीर सब प्रकार की उन्नति करने के लिए प्राप्त किया है। इसलिए उसे चाहिए कि आध्यात्मिक और भौतिक सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष प्राप्त करे ॥२॥
पदार्थ
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (ज्योतिः सन) अपनी ज्योति को सेवन करा—प्रदान कर (स्वः सन) अपने मोक्ष को सेवन करा—प्रदान कर (च) और (विश्वा सौभगा) सारे सौभाग्य इहलोक परलोक के सौभाग्य भी हमें सेवन करा (अथ नः-वस्यसः-कृधि) पूर्ववत्॥२॥
विशेष
<br>
विषय
ज्योति, स्वः, सौभग
पदार्थ
हे (सोम) = सोम [वीर्य] की रक्षा के द्वारा दर्शन का विषय बने हुए ब्रह्माण्ड के निर्माता प्रभो ! आप हमें १. (ज्योतिः) = प्रकाश (सना) = दीजिए। आपकी कृपा से हम सदा प्रकाश में विचरें । आत्मस्वरूप को जानें व जीवन-यात्रा के मार्ग को स्पष्टतया देखनेवाले हों । २. (स्वः) = आत्म-प्राप्तिरूप रमणीय सुख दीजिए। प्रकाश में विचरते हुए हम जीवन-यात्रा को पूर्ण करके मोक्ष-सुख को प्राप्त करनेवाले हों । ३. (च) = और इस जीवन में भी (विश्वा सौभगा) = सब सौभाग्यों को हमें प्राप्त कराइए । [सौभग=Happiness and prosperity] हमारे जीवन सुख व समृद्धि से युक्त हो । संक्षेप में हमारा जीवन ज्योतिर्मय हो। ज्योति में जीवन-यात्रा को पूरा करते हुए हम जहाँ मोक्ष-सुख [स्व:] व निःश्रेयस का लाभ करें वहाँ हमारा यह ऐहिक जीवन भी सुख-समृद्धि-सम्पन्न हो ((अथ नः वस्यसः कृधि)) = और हम उत्कृष्ट जीवनवाले बनें ।
भावार्थ
सोम की कृपा से हमें प्रकाश, प्रकृष्ट आनन्द तथा सुख-समृद्धि प्राप्त हो ।
विषय
missing
भावार्थ
हे (सोम) परमात्मन् ! हमें (ज्योतिः) प्रकाश, ज्ञान (सन) दो। (स्वः) सुख (सन) दो। और (विश्वा च सौभगा) समस्त सौभाग्ययुक्त पदार्थ दो। (अथ नः वयसः कृधि) और हमें उत्तम वसुमान् अर्थात् ज्ञानी जनों में श्रेष्ठ करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१ (१) आकृष्टामाषाः (२, ३) सिकतानिवावरी च। २, ११ कश्यपः। ३ मेधातिथिः। ४ हिरण्यस्तूपः। ५ अवत्सारः। ६ जमदग्निः। ७ कुत्सआंगिरसः। ८ वसिष्ठः। ९ त्रिशोकः काण्वः। १० श्यावाश्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ अमहीयुः। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १६ मान्धाता यौवनाश्वः। १५ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। १७ असितः काश्यपो देवलो वा। १८ ऋणचयः शाक्तयः। १९ पर्वतनारदौ। २० मनुः सांवरणः। २१ कुत्सः। २२ बन्धुः सुबन्धुः श्रुतवन्धुविंप्रबन्धुश्च गौपायना लौपायना वा। २३ भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। २४ ऋषि रज्ञातः, प्रतीकत्रयं वा॥ देवता—१—६, ११–१३, १७–२१ पवमानः सोमः। ७, २२ अग्निः। १० इन्द्राग्नी। ९, १४, १६, इन्द्रः। १५ सोमः। ८ आदित्यः। २३ विश्वेदेवाः॥ छन्दः—१, ८ जगती। २-६, ८-११, १३, १४,१७ गायत्री। १२, १५, बृहती। १६ महापङ्क्तिः। १८ गायत्री सतोबृहती च। १९ उष्णिक्। २० अनुष्टुप्, २१, २३ त्रिष्टुप्। २२ भुरिग्बृहती। स्वरः—१, ७ निषादः। २-६, ८-११, १३, १४, १७ षड्जः। १-१५, २२ मध्यमः १६ पञ्चमः। १८ षड्जः मध्यमश्च। १९ ऋषभः। २० गान्धारः। २१, २३ धैवतः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनरपि जीवात्मा समुद्बोध्यते।
पदार्थः
हे (सोम) अग्रगामिन् जीवात्मन् ! त्वम् (ज्योतिः) दिव्यं प्रकाशं (सन) संभजस्व, (स्वः) ब्रह्मानन्दं च (सन) संभजस्व, (विश्वा च) विश्वानि च (सौभगा) सौभगानि सौभाग्यानि (सन) संभजस्व। (अथ) तदनन्तरं च (नः) अस्मानपि (वस्यसः) वसीयसः, अतिशयेन वसुमतः (कृधि) कुरु ॥२॥
भावार्थः
जीवात्मना सर्वोत्कृष्टो मानवदेहः सर्वविधोन्नतिकरणाय प्राप्तोऽस्ति। अतस्तेनाध्यात्मिकेषु भौतिकेषु च सर्वेष्वेव क्षेत्रेषूत्कर्षः सम्पादनीयः ॥२॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।४।२।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, grant us the light of knowledge, happiness and all felicities. Make us better than we are !
Meaning
Soma, spirit of divine love and joy, give us eternal light, give us heavenly joy, and give us all good fortunes of the world and make us happy and prosperous more and ever more. (Rg. 9-4-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोम) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (ज्योतिः सन) તારી જ્યોતિનું સેવન કરાવ-પ્રાપ્ત કરાવ (स्वः सन) તારા મોક્ષનું સેવન કરાવ-પ્રદાન કર (च) અને (विश्वा सौभगा) સમસ્ત સૌભાગ્ય-આલોક અને પરલોકનું સૌભાગ્ય પણ અમને સેવન કરાવ. (अथ) અનન્તર (नः वस्यसः कृधे) અમને શ્રેષ્ઠ કરો-બનાવો. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
जीवात्म्याने सर्वात उत्कृष्ट मानव-शरीर सर्व प्रकारची उन्नती करण्यासाठी प्राप्त केलेले आहे. त्यासाठी त्याने आध्यात्मिक व भौतिक सर्व क्षेत्रात उत्कर्ष साधावा. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal