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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1049
    ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    30

    स꣢ना꣣ द꣡क्ष꣢मु꣣त꣢꣫ क्रतु꣣म꣡प꣢ सोम꣣ मृ꣡धो꣢ जहि । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०४९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स꣡न꣢꣯ । द꣡क्ष꣢꣯म् । उ꣣त꣢ । क्र꣡तु꣢꣯म् । अ꣡प꣢꣯ । सो꣣म । मृ꣡धः꣢꣯ । ज꣣हि । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०४९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सना दक्षमुत क्रतुमप सोम मृधो जहि । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०४९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सन । दक्षम् । उत । क्रतुम् । अप । सोम । मृधः । जहि । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०४९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1049
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर जीवात्मा का ही विषय है।

    पदार्थ

    हे (सोम) ऐश्वर्य उत्पन्न करने में समर्थ जीवात्मन् ! तू (दक्षम्) बल को (उत) और (क्रतुम्) कर्म तथा प्रज्ञान को (सन) प्राप्त कर। (मृधः) संग्रामकारी हिंसक काम-क्रोध आदि आन्तरिक तथा बाह्य शत्रुओं को (अप जहि) विनष्ट कर। (अथ) इस प्रकार अपना उत्कर्ष करने के अनन्तर (नः) हमें भी (वस्यसः) अतिशय ऐश्वर्यवान् (कृधि) कर ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य को चाहिए कि स्वयं बल, कर्म, प्रज्ञान, सारे ही ऐश्वर्य को सञ्चित करके तथा विघ्नकारियों को पराजित करके, सबका अगुआ बनकर दूसरों का भी उपकार करे ॥३॥

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    पदार्थ

    (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (दक्षम्-उत क्रतुं सन) आत्मबल को मानस सङ्कल्प को प्रदान कर (मृधः-अपजहि) काम आदि घातकों को नष्ट कर। शेष पूर्ववत्॥३॥

    विशेष

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    विषय

    दक्ष-क्रतु-कामसंहार

    पदार्थ

    १ हे (सोम) = प्रभो! हमें (दक्षम्) = बल (सना) = प्राप्त कराइए । दक्ष शब्द में मानस शक्ति [ Mental power] योग्यता [ability], दृढ़निश्चय [resoluteness] व शक्ति [Strength] की भावना अन्तर्निहित है। प्रभुकृपा से हमें यह 'मानसबल, योग्यता, दृढ़निश्चय व शक्ति' प्राप्त हो । २. (उत) = और क्रतुम् [Intelligence, deliberation, Inspiration; Enlightenment] बुद्धि, विचार, प्रेरणा व

    प्रकाश (सना) = दीजिए । (क्रतुम्) = हम प्रत्येक कार्य को योग्यता से करनेवाले हों [Efficiency]। हमारा प्रत्येक कार्य सोद्देश्य हो [ plan, design, purpose]। हम अपने कर्मों को दृढ़-सङ्कल्प के साथ करें [Resolution]। हमारा प्रत्येक कार्य प्रभु चरणों में अर्पित हो [offering worship]। हम अपने पवित्र कर्मों से प्रभु की उपासना कर रहे हों । ३. हे सोम ! आप (मृधः) = हमारे कामादि शत्रुओं को (अपजहि) = हमसे सुदूर नष्ट कीजिए । कामादि शत्रुओं के संहार से (अथ) = अब (नः) = हमें (वस्यसः) = उत्तम जीवनवाला (कृधि) = कीजिए ।

    भावार्थ

    सोम के द्वारा हमें दक्षता प्राप्त हो, हम क्रतुमय जीवनवाले हों- कामादि का संहार कर जीवन को सुन्दर बनाएँ ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे प्रभो ! हमें (दक्षम् उत क्रतुं) बल और उत्तम कर्म करने का सामर्थ्य (सन) दो और (मृधः) प्रतिस्पर्धी, विघ्नकारी हिंसकों को (अप जहि) विनाश करो, (अथ नः०) और हमें सब में श्रेष्ठ करो।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ (१) आकृष्टामाषाः (२, ३) सिकतानिवावरी च। २, ११ कश्यपः। ३ मेधातिथिः। ४ हिरण्यस्तूपः। ५ अवत्सारः। ६ जमदग्निः। ७ कुत्सआंगिरसः। ८ वसिष्ठः। ९ त्रिशोकः काण्वः। १० श्यावाश्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ अमहीयुः। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १६ मान्धाता यौवनाश्वः। १५ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। १७ असितः काश्यपो देवलो वा। १८ ऋणचयः शाक्तयः। १९ पर्वतनारदौ। २० मनुः सांवरणः। २१ कुत्सः। २२ बन्धुः सुबन्धुः श्रुतवन्धुविंप्रबन्धुश्च गौपायना लौपायना वा। २३ भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। २४ ऋषि रज्ञातः, प्रतीकत्रयं वा॥ देवता—१—६, ११–१३, १७–२१ पवमानः सोमः। ७, २२ अग्निः। १० इन्द्राग्नी। ९, १४, १६, इन्द्रः। १५ सोमः। ८ आदित्यः। २३ विश्वेदेवाः॥ छन्दः—१, ८ जगती। २-६, ८-११, १३, १४,१७ गायत्री। १२, १५, बृहती। १६ महापङ्क्तिः। १८ गायत्री सतोबृहती च। १९ उष्णिक्। २० अनुष्टुप्, २१, २३ त्रिष्टुप्। २२ भुरिग्बृहती। स्वरः—१, ७ निषादः। २-६, ८-११, १३, १४, १७ षड्जः। १-१५, २२ मध्यमः १६ पञ्चमः। १८ षड्जः मध्यमश्च। १९ ऋषभः। २० गान्धारः। २१, २३ धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनर्जीवात्मन एव विषय उच्यते।

    पदार्थः

    हे (सोम) ऐश्वर्योत्पादनसमर्थ जीवात्मन् ! त्वम् (दक्षम्) बलम् (उत) अपि च (क्रतुम्) कर्म प्रज्ञानं च (सन) संभजस्व। (मृधः) संग्रामकारिणः हिंसकान् कामक्रोधादीन् आन्तरान् बाह्यांश्च शत्रून् (अप जहि) विनाशय। (अथ) एवं स्वोत्कर्षसम्पादनानन्तरम् (नः) अस्मानपि (वस्यसः) अतिशयेन वसुमतः (कृधि) कुरु ॥३॥

    भावार्थः

    मनुष्यः स्वयं बलं कर्म प्रज्ञानं सर्वमप्यैश्वर्यं सञ्चित्य विघ्नकारिणश्च पराजित्य सर्वाग्रणीर्भूत्वाऽन्यानप्युपकुर्यात् ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।४।३।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, grant us skilful strength and mental power, drive away our foes. Make us better than we are !

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    Meaning

    Soma, spirit of peace and excellence, give us strength and efficiency, protect and promote our noble actions, and ward off all sin, violence and evil forces, and thus make us happy and successful, more and ever more. (Rg. 9-4-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सोम) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (दक्षम् उत क्रतुं सन) આત્મબળને માનસ સંકલ્પને પ્રદાન કર (मृधः अपजहि) કામ આદિ ઘાતકોનો નાશ કર.  (अथ) અનન્તર (नः वस्यसः कृधे) અમને શ્રેષ્ઠ કરો-બનાવો. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसाने स्वत: बल, कर्म, प्रज्ञान संपूर्ण ऐश्वर्य संचित करावे व विघ्नकारी लोकांना पराजित करावे. सर्वांचा अग्रणी नेता बनून दुसऱ्यावर उपकार करावा. ॥३॥

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