Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1082
ऋषिः - अमहीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
स꣡मिन्द्रे꣢꣯णो꣣त꣢ वा꣣यु꣡ना꣢ सु꣣त꣡ ए꣢ति प꣣वि꣢त्र꣣ आ꣢ । स꣡ꣳ सूर्य꣢꣯स्य र꣣श्मि꣡भिः꣢ ॥१०८२॥
स्वर सहित पद पाठस꣢म् । इ꣡न्द्रे꣢꣯ण । उ꣣त꣢ । वा꣣यु꣡ना꣢ । सु꣣तः꣢ । ए꣣ति । प꣣वि꣡त्रे꣢ । आ । सम् । सू꣡र्य꣢꣯स्य । र꣣श्मि꣡भिः꣢ ॥१०८२॥
स्वर रहित मन्त्र
समिन्द्रेणोत वायुना सुत एति पवित्र आ । सꣳ सूर्यस्य रश्मिभिः ॥१०८२॥
स्वर रहित पद पाठ
सम् । इन्द्रेण । उत । वायुना । सुतः । एति । पवित्रे । आ । सम् । सूर्यस्य । रश्मिभिः ॥१०८२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1082
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - जितेन्द्रियता -क्रिया व ज्ञान
पदार्थ -
१. (इन्द्रेण) = जितेन्द्रियता के (सम्) = साथ (सुतः) = उत्पन्न हुआ-हुआ, अर्थात् जितेन्द्रियता की स्वाभाविक वृत्तिवाला २. (उत) = और (वायुना सं सुतः) = (वा गतौ) क्रियाशीलता के साथ उत्पन्न हुआ-हुआ, अर्थात् क्रियाशीलता की स्वाभाविक वृत्तिवाला, स्वाभाविकी क्रियावाला, ३. (सूर्यस्य रश्मिभिः सं सुतः) = सूर्य की किरणों के साथ उत्पन्न हुआ-हुआ, अर्थात् स्वभावतः ज्ञान की वृत्तिवाला यह अमहीयु (पवित्रे) = उस पूर्ण पवित्र प्रभु में (आ एति) = समन्तात् गतिवाला होता है।
‘अमहीयु' पुरुष जन्मान्तरों के संस्कारों के उत्पन्न होते ही 'जितेन्द्रियता, क्रियाशीलता व ज्ञान' की रुचिवाला होता है और इस प्रकार की रुचिवाला बनकर यह सदा उस पवित्र प्रभु में स्थित हुआ-हुआ गतिशील होता है— ब्रह्मनिष्ठ होकर कर्म करता है, इसीलिए इसके कर्म पवित्र बने रहते हैं ।
भावार्थ -
हमारा स्वभाव जितेन्द्रियता, क्रिया व ज्ञान का हो ।