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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1118
ऋषिः - वृषगणो वासिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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स꣡ यो꣢जत उरुगा꣣य꣡स्य꣢ जू꣣तिं꣢ वृथा꣣ क्री꣡ड꣣न्तं मिमते꣣ न꣡ गावः꣢꣯ । प꣣रीणसं꣡ कृ꣢णुते ति꣣ग्म꣡शृ꣢ङ्गो꣣ दि꣢वा꣣ ह꣢रि꣣र्द꣡दृ꣢शे꣣ न꣡क्त꣢मृ꣣ज्रः꣢ ॥१११८॥

स्वर सहित पद पाठ

सः । यो꣣जते । उरुगाय꣡स्य꣢ । उ꣣रु । गाय꣡स्य꣢ । जू꣣ति꣢म् । वृ꣡था꣢꣯ । क्री꣡ड꣢꣯न्तम् । मि꣣मते । न꣢ । गा꣡वः꣢꣯ । प꣣रीणस꣢म् । प꣣रि । नस꣢म् । कृ꣣णुते । तिग्म꣡शृ꣢ङ्गः । तिग्म꣢ । शृ꣣ङ्गः । दि꣡वा꣢꣯ । ह꣡रिः꣢꣯ । द꣡दृ꣢꣯शे । न꣡क्त꣢꣯म् । ऋ꣣ज्रः꣢ ॥१११८॥


स्वर रहित मन्त्र

स योजत उरुगायस्य जूतिं वृथा क्रीडन्तं मिमते न गावः । परीणसं कृणुते तिग्मशृङ्गो दिवा हरिर्ददृशे नक्तमृज्रः ॥१११८॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । योजते । उरुगायस्य । उरु । गायस्य । जूतिम् । वृथा । क्रीडन्तम् । मिमते । न । गावः । परीणसम् । परि । नसम् । कृणुते । तिग्मशृङ्गः । तिग्म । शृङ्गः । दिवा । हरिः । ददृशे । नक्तम् । ऋज्रः ॥१११८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1118
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

१. (सः) = प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि‘वृषगण' (उरुगायस्य) = उस बहुत यशवाले प्रभु की (जूतिम्) = गति को (योजते) = अपने जीवन में जोड़ता है। 'वृषगण'=धर्म का चिन्तन करनेवाला व्यक्ति प्रभु का गायन करता है और प्रभु के गुणों को अपने जीवन में धारण करने का प्रयत्न करता । २. यह अनुभव करता है कि (वृथा क्रीडन्तम्) = उस अनायास सृष्टि के निर्माण, धारण व प्रलयरूप क्रीड़ा को करते हुए उस प्रभु को (गावः न मिमते) = वाणियाँ नहीं माप सकतीं, अर्थात् शब्दों से उस प्रभु की महिमा का वर्णन सम्भव नहीं । (तिग्मशृङ्गः) = यह तीक्ष्ण तेजवाला प्रभु (परीणसं कृणुते) = तो खूब ही, [परीणसं इति बहुनाम – नि० ३.१.६] करता है कि (दिवानक्तम्) = दिन-रात वह (हरिः) = अन्धकार का हरण तथा (ऋज्र:) = [ऋजि भर्जने] पापों का दहन करता हुआ ददृशे दीखता है। उस प्रभु का सर्वमहान्, अद्भुत कार्य यही है कि वे वृषगणों के अन्धकार को दूर कर रहे हैं और पापों का भर्जन कर रहे हैं । उस प्रभु का दर्शन-चिन्तन हमारे पापों का नाश करनेवाला है ।

भावार्थ -

१. हम प्रभु की क्रियाओं को अपने साथ जोड़ें - उन्हीं की भाँति दया व न्याय करनेवाले बनें। २. वे प्रभु हमारे अन्धकार को दूर करेंगे और हमारे पापों का दहन कर देंगे ।

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