Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1134
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
स꣢ वा꣣यु꣡मिन्द्र꣢꣯म꣣श्वि꣡ना꣢ सा꣣कं꣡ मदे꣢꣯न गच्छति । र꣢णा꣣ यो꣡ अ꣢स्य꣣ ध꣡र्म꣢णा ॥११३४॥
स्वर सहित पद पाठसः । वा꣣यु꣢म् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣श्वि꣡ना꣢ । सा꣣क꣢म् । म꣡दे꣢꣯न । ग꣣च्छति । र꣡ण꣢꣯ । यः । अ꣣स्य । ध꣡र्म꣢꣯णा ॥११३४॥
स्वर रहित मन्त्र
स वायुमिन्द्रमश्विना साकं मदेन गच्छति । रणा यो अस्य धर्मणा ॥११३४॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । वायुम् । इन्द्रम् । अश्विना । साकम् । मदेन । गच्छति । रण । यः । अस्य । धर्मणा ॥११३४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1134
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
Acknowledgment
विषय - प्रभु को कौन प्राप्त करता है ?
पदार्थ -
(सः) = वह व्यक्ति (यः) = जो (अस्य) = प्रभु के (धर्मणा) = कर्मों से (रणा) = रमण करता है— आनन्द का अनुभव करता है, अर्थात् प्रभु-प्राप्ति के लिए हितकर कर्मों में ही आनन्द लेता है, (वायुम्) = [वा गतौ] स्वभावतः क्रियावाले और सारे ब्रह्माण्ड को गति देनेवाले (इन्द्रम्) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु को (अश्विना) = प्राणापानों के द्वारा, अर्थात् प्राण- साधना के द्वारा (मदेन साकम्) - सदा उल्लास के साथ जीवन-यापन करता हुआ (गच्छति) = प्राप्त होता है ।
प्रभु-प्राप्ति का मार्ग यह है कि हम १. प्रभु से उपदिष्ट कर्मों में रमण करें- आत्मकि उन्नति के लिए किये जानेवाले कर्मों में हमारी रुचि हो, २. प्राणापान की साधना का हम ध्यान करें, ३. जीवन में सदा उल्लासमय रहने का प्रयत्न करें ।
प्रभु वायु हैं—हमें गति देनेवाले हैं और वे प्रभु ‘इन्द्र' हैं–परमैश्वर्यवाले हैं। ‘वायुमिन्द्रम्’ शब्दों का यह क्रम संकेत करता है कि गतिशीलता ही ऐश्वर्य प्राप्ति का साधन है।
भावार्थ -
१. हम प्रभु-प्राप्ति के साधनभूत कर्मों में आनन्द लें, २. प्राण- साधना करें, ३. सदा जीवन को उल्लासमय बनाने के लिए यत्नशील हों ।
इस भाष्य को एडिट करें