Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1186
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
वृ꣣ष्टिं꣢ दि꣣वः꣡ परि꣢꣯ स्रव द्यु꣣म्नं꣡ पृ꣢थि꣣व्या꣡ अधि꣢꣯ । स꣡हो꣢ नः सोम पृ꣣त्सु꣡ धाः꣢ ॥११८६॥
स्वर सहित पद पाठवृ꣣ष्टि꣢म् । दि꣣वः꣡ । प꣡रि꣢꣯ । स्र꣣व । द्युम्न꣢म् । पृ꣣थिव्याः꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । स꣡हः꣢꣯ । नः꣣ । सोम । पुत्सु꣢ । धाः꣢ ॥११८६॥
स्वर रहित मन्त्र
वृष्टिं दिवः परि स्रव द्युम्नं पृथिव्या अधि । सहो नः सोम पृत्सु धाः ॥११८६॥
स्वर रहित पद पाठ
वृष्टिम् । दिवः । परि । स्रव । द्युम्नम् । पृथिव्याः । अधि । सहः । नः । सोम । पुत्सु । धाः ॥११८६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1186
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 9
Acknowledgment
विषय - सोम-लता
पदार्थ -
सोमलता की जब अग्निहोत्र में आहुतियाँ दी जाती हैं तब कहते हैं कि हे प्रभो ! तू १. (दिवः) = अन्तरिक्ष से (वृष्टिं परिस्रव) = वर्षा करनेवाला हो २. उस वर्षा के परिणामस्वरूप (पृथिव्याः अधिद्युम्नं परिस्रव) = इस पृथिवी में अधिक अन्न का जन्म देनेवाला बन । ३. और इस अन्न के द्वारा (नः) = हममें (पृत्सु) = रोगादि से संग्रामों में (सहः) = शक्ति को (धाः) = धारण कर।
एवं, सोमाहुति वृष्टि का कारण बनती है, अन्न को उत्पन्न करती है, और हमें शक्ति देती है कि हम रोगादि से संग्राम में सदा विजयी बनें ।
सोम का अर्थ प्रभु करें तो मन्त्रार्थ इस प्रकार होगा ।
१. हे (सोम) = प्रभो ! धर्ममेघ समाधि में (दिवः) = मस्तिष्करूप द्युलोक से वृष्टिम् आनन्द की वृष्टि को (परिस्रव) = कीजिए । २. (पृथिव्याः अधि) = इस शरीररूप पृथिवी में (द्युम्नम्) = ज्योति व शक्ति को उत्पन्न कीजिए । ३. (पृत्सु) = वासनाओं के साथ संग्रामों में (नः) = हमारे अन्दर (सह:) = इन शत्रुओं के पराभव के बल को (धाः) = धारण कीजिए ।
भावार्थ -
हम यज्ञों में सोमलता की आहुति दें। इस जीवन-यज्ञ में प्रभु का पूजन करनेवाले बनें ।
इस भाष्य को एडिट करें