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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1265
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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ए꣣ष꣢ उ꣣ स्य꣡ पु꣢रुव्र꣣तो꣡ ज꣢ज्ञा꣣नो꣢ ज꣣न꣢य꣣न्नि꣡षः꣢ । धा꣡र꣢या पवते सु꣣तः꣢ ॥१२६५॥

स्वर सहित पद पाठ

ए꣣षः꣢ । उ꣣ । स्यः꣢ । पु꣣रुव्रतः꣢ । पु꣣रु । व्रतः꣢ । ज꣣ज्ञानः꣢ । ज꣣न꣡य꣢न् । इ꣡षः꣢꣯ । धा꣡र꣢꣯या । प꣣वते । सुतः꣢ ॥१२६५॥


स्वर रहित मन्त्र

एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निषः । धारया पवते सुतः ॥१२६५॥


स्वर रहित पद पाठ

एषः । उ । स्यः । पुरुव्रतः । पुरु । व्रतः । जज्ञानः । जनयन् । इषः । धारया । पवते । सुतः ॥१२६५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1265
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
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पदार्थ -

(एषः स्यः) = यह वह परमात्मा (उ) = निश्चय से [प्रभु को 'एष: स्य: ' कहा है कि वह समीप-सेसमीप है और दूर-से-दूर] १. पुरुव्रतः = पालक और पूरक व्रतोंवाला है। यह प्राणिमात्र का पालन कर रहा है । २. (जज्ञान:) = यह सदा लोक-लोकान्तरों का निर्माण करनेवाला है। ३. (जनयन् इषः) = यह प्रेरणाओं को उत्पन्न कर रहा है – जीव को हृदयस्थरूप से सदा कर्त्तव्य की प्रेरणा दे रहा है । ४. यदि एक भक्त उस प्रभु को हृदय में देखने का प्रयत्न करता है तो (सुतः) = आविर्भूत हुआ-हुआ वह प्रभु (धारया) = वेदवाणी द्वारा हमारे जीवनों को (पवते) = पवित्र करता है ।

भावार्थ -

हम प्रभु को हृदय में प्रकट करने का प्रयत्न करें, हमें अवश्य उत्तम प्रेरणा प्राप्त होगी ।
 

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