Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1275
ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ए꣣तं꣢ त्रि꣣त꣢स्य꣣ यो꣡ष꣢णो꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हिन्व꣣न्त्य꣡द्रि꣢भिः । इ꣢न्दु꣣मि꣡न्द्रा꣢य पी꣣त꣡ये꣢ ॥१२७५॥
स्वर सहित पद पाठए꣣त꣢म् । त्रि꣣त꣡स्य꣢ । यो꣡ष꣢꣯णः । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । इ꣡न्दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । पी꣣त꣡ये꣢ ॥१२७५॥
स्वर रहित मन्त्र
एतं त्रितस्य योषणो हरिꣳ हिन्वन्त्यद्रिभिः । इन्दुमिन्द्राय पीतये ॥१२७५॥
स्वर रहित पद पाठ
एतम् । त्रितस्य । योषणः । हरिम् । हिन्वन्ति । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । इन्दुम् । इन्द्राय । पीतये ॥१२७५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1275
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - दृढ़-सङ्कल्प
पदार्थ -
(एतं हरिम्) = इस सब आधि-व्याधि व उपाधियों के हरनेवाले प्रभु को (त्रितस्य) = इस तीर्णतमअत्यन्त प्रबल‘काम, क्रोध, लोभ' रूप त्रिक [Traid] के (योषण:) = नष्ट करनेवाले [यूष हिंसायाम्], (अद्रिभिः) = न नष्ट करने योग्य [अविदारणीय], दृढ़-सङ्कल्पों से (हिन्वन्ति) = प्राप्त होते हैं। प्रभुप्राप्ति के लिए दो बातें आवश्यक हैं – १. काम, क्रोध, लोभ का नाश करना । २. प्रभु-प्राप्ति का दृढ़-सङ्कल्प। दृढ़-सङ्कल्प के बिना कामादि का नष्ट करना भी कठिन है।
ये (इन्दुम्) = परमैश्वर्यशाली, सर्वशक्तिमान् प्रभु को प्राप्त करने का इसलिए दृढ़-सङ्कल्प करते हैं कि प्रभु-प्राप्ति से ही १. (इन्द्राय) = परमैश्वर्य व शक्ति को प्राप्त करके हमें इन्द्र बनना है [इन्द्राय=इन्द्रत्व की प्राप्ति के लिए] तथा २. (पीतये) = रक्षा के लिए । प्रभु से सुरक्षित होकर ही हम अपने को वासनाओं से सुरक्षित कर पाते हैं।
इस प्रकार प्रभु-प्राप्ति के लिए दो साधन हैं – १. काम, क्रोध, लोभ के त्रित से ऊपर उठना तथा २. दृढ़-सङ्कल्प । ही इसके फल हैं— १. परमैश्वर्य की प्राप्ति और २. वासनाओं के आक्रमण से रक्षा ।
भावार्थ -
हम प्रभु-प्राप्ति के लिए कटिबद्ध होकर जीवन-यात्रा में आगे बढ़ें।
इस भाष्य को एडिट करें