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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1315
ऋषिः - सप्तर्षयः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - द्विपदा विराट् स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
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प꣡रि꣢ स्वा꣣न꣡श्चक्ष꣢꣯से देव꣣मा꣡द꣢नः꣣ क्र꣢तु꣣रि꣡न्दु꣢र्विचक्ष꣣णः꣢ ॥१३१५

स्वर सहित पद पाठ

प꣡रि꣢꣯ । स्वा꣣नः꣢ । च꣡क्ष꣢꣯से । दे꣣वमा꣡द꣢नः । दे꣣व । मा꣡द꣢꣯नः । क्र꣡तुः꣢꣯ । इ꣡न्दुः꣢꣯ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ ॥१३१५॥


स्वर रहित मन्त्र

परि स्वानश्चक्षसे देवमादनः क्रतुरिन्दुर्विचक्षणः ॥१३१५


स्वर रहित पद पाठ

परि । स्वानः । चक्षसे । देवमादनः । देव । मादनः । क्रतुः । इन्दुः । विचक्षणः । वि । चक्षणः ॥१३१५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1315
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

हे सोम! तू जब शरीर में व्याप्त होता है तब १. (परिस्वान:) = [परि + सु + आनः] अङ्ग-प्रत्यङ्ग । में बड़ी उत्तमता से प्राणशक्ति भरनेवाला होता है [आनयति ] | सारी प्राणशक्ति सोम के कारण ही है। २. (चक्षसे) = तू दृष्टिशक्ति को बढ़ानेवाला है। वीर्यरक्षा से चक्षु अपना कार्य करने में बड़ी समर्थ होती हैं। ३. (देवमादन:) = तू ही मनुष्यों को 'देव' बनानेवाला है और उनके जीवनों में 'मद' हर्ष भरनेवाला है, देवताओं को एक मस्ती प्राप्त करानेवाला है । ४. (क्रतुः) = तू उनके जीवनों को यज्ञमय बनाता है। वस्तुतः सोमरक्षा से मनुष्य की मनोवृत्ति उत्तम होती है और परिणामतः वह स्वार्थ से ऊपर उठ जाता है । ५. (इन्द्रः) = यह अपने पान करनेवाले को शक्तिशाली बनाता है [इन्द् to be powerful] । ६. (विचक्षणः) = यह हमारे ज्ञान को बढ़ाकर हमें विशिष्ट दृष्टिकोणवाला बनाता है। 

भावार्थ -

सोम हमें प्राणित करता है, दृष्टिशक्ति को बढ़ाता है, एक दिव्य मस्ती देता है, हमारे जीवन को यज्ञिय बनाता है, शक्तिशाली बनाता है तथा हमारे ज्ञान को बढ़ाने का साधन होता है।

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