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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1348
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - तनूनपात्
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
म꣡धु꣢मन्तं तनूनपाद्य꣣ज्ञं꣢ दे꣣वे꣡षु꣢ नः कवे । अ꣣द्या꣡ कृ꣢णुह्यू꣣त꣡ये꣢ ॥१३४८॥
स्वर सहित पद पाठम꣡धु꣢꣯मन्तम् । त꣣नूनपात् । तनू । नपात् । यज्ञ꣢म् । दे꣣वे꣡षु꣢ । नः꣣ । कवे । अ꣡द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । कृ꣣णुहि । ऊत꣡ये꣢ ॥१३४८॥
स्वर रहित मन्त्र
मधुमन्तं तनूनपाद्यज्ञं देवेषु नः कवे । अद्या कृणुह्यूतये ॥१३४८॥
स्वर रहित पद पाठ
मधुमन्तम् । तनूनपात् । तनू । नपात् । यज्ञम् । देवेषु । नः । कवे । अद्य । अ । द्य । कृणुहि । ऊतये ॥१३४८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1348
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - मधुमान् यज्ञ
पदार्थ -
हे (कवे) = क्रान्तदर्शिन् ! वेदज्ञान द्वारा सब विद्याओं का उपदेश देनेवाले प्रभो ! (तनूनपात्) = शरीर को नष्ट न होने देनेवाले प्रभो ! [प्रभु-स्मरण से आचार-विचार की पवित्रता के द्वारा दीर्घायुष्य प्राप्त होता है।] आप (अद्य) = आज ही, अर्थात् (अविलम्ब) = बिना किसी देर के (नः ऊतये) = हमारी रक्षा के लिए, अशुभ विचारों और व्यवहारों से बचाने के लिए हमें (देवेषु) = विद्वानों के सम्पर्क में (मधुमन्तं यज्ञम्) = मधुवाले ज्ञानयज्ञ को (कृणुहि) = सिद्ध कीजिए ।
'विज्ञान का अध्ययन करते हुए प्रभु की महिमा का स्मरण कर ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है, और यह ब्रह्मज्ञान व ब्रह्म का ध्यान हमारे जीवनों को पवित्र व मधुर बना देता है 'ये ही यज्ञ 'मधुमान् यज्ञ' कहलाते हैं । प्रभुकृपा से देवों के सम्पर्क में ये यज्ञ हमारे जीवनों में सदा चलते रहें जिससे हम आसुर वृत्तियों के आक्रमण से बचे रहें ।
भावार्थ -
प्रभु हमें विद्वानों का सम्पर्क प्राप्त कराएँ — उनके सम्पर्क में हम सदा ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील हों ।
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