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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1353
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - आदित्यः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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उ꣣त꣢ स्व꣣रा꣢जो꣣ अ꣡दि꣢ति꣣र꣡द꣢ब्धस्य व्र꣣त꣢स्य꣣ ये꣢ । म꣣हो꣡ राजा꣢꣯न ईशते ॥१३५३॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣣त꣢ । स्व꣣रा꣡जः꣢ । स्व꣣ । रा꣡जः꣢꣯ । अ꣡दि꣢꣯तिः । अ । दि꣣तिः । अ꣡द꣢꣯ब्धस्य । अ । द꣣ब्धस्य । व्रत꣡स्य꣢ । ये । म꣣हः꣢ । रा꣡जा꣢꣯नः । ई꣣शते ॥१३५३॥


स्वर रहित मन्त्र

उत स्वराजो अदितिरदब्धस्य व्रतस्य ये । महो राजान ईशते ॥१३५३॥


स्वर रहित पद पाठ

उत । स्वराजः । स्व । राजः । अदितिः । अ । दितिः । अदब्धस्य । अ । दब्धस्य । व्रतस्य । ये । महः । राजानः । ईशते ॥१३५३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1353
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

(उत) = और १. (ये) = जो (स्वराजः) = अपना शासन करनेवाले होते हैं, अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखते हैं, अपने जीवन को सूर्य-चन्द्रमा की भाँति सुमर्यादित [well regulated] करते हैं २. और (अदब्धस्य व्रतस्य) = अहिंसित-अखण्डित व्रत के (अदितिः) = न खण्डन करनेवाले होते हैं, अर्थात् व्रत को कभी टूटने नहीं देते। ये (राजानः) = देदीप्यमान, मर्यादित जीवनवाले व्यक्ति (महः) = तेज का (ईशते) = ईशन करते हैं । १ वशिष्ठ तेजस्वी है, क्योंकि वह अपने पर काबू रखनेवाला है और उसका जीवन व्रती है । 
 

भावार्थ -

हम जितेन्द्रिय तथा व्रती बनें जिससे तेजस्विता के ईश हों ।

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