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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1415
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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य꣡म꣢ग्ने पृ꣣त्सु꣢꣫ मर्त्य꣣म꣢वा꣣ वा꣡जे꣢षु꣣ यं꣢ जु꣣नाः꣢ । स꣢꣫ यन्ता꣣ श꣡श्व꣢ती꣣रि꣡षः꣢ ॥१४१५॥

स्वर सहित पद पाठ

य꣢म् । अ꣢ग्ने । पृत्सु꣡ । म꣡र्त्य꣢꣯म् । अ꣡वाः꣢꣯ । वा꣡जे꣢꣯षु । यम् । जु꣣नाः꣢ । सः । य꣡न्ता꣢꣯ । श꣡श्व꣢꣯तीः । इ꣡षः꣢꣯ ॥१४१५॥


स्वर रहित मन्त्र

यमग्ने पृत्सु मर्त्यमवा वाजेषु यं जुनाः । स यन्ता शश्वतीरिषः ॥१४१५॥


स्वर रहित पद पाठ

यम् । अग्ने । पृत्सु । मर्त्यम् । अवाः । वाजेषु । यम् । जुनाः । सः । यन्ता । शश्वतीः । इषः ॥१४१५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1415
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

हे (अग्ने) = मोक्षसुख तक ले-चलनेवाले प्रभो! आप (यं मर्त्यम्) = जिस मनुष्य की (पृत्सु) = संग्रामों में (अवा:) = रक्षा करते हैं और (यम्) = जिसे वाजेषु-शक्ति व ज्ञानों में (जुना:) = जोड़ते हैं, शक्ति और ज्ञान प्राप्त कराते हैं [जुङ् गतौ ] (सः) = वह मनुष्य (शश्वतीः इषः) = प्लुतगतिवाली - हृदय-सरोवर में ठाठें मारनेवाली कामनाओं को (यन्ता) = क़ाबू करनेवाला होता है।

मानव-हृदय में वासनाएँ सदा से उमड़ रही है— इनका नियन्त्रण वही व्यक्ति कर पाता है जो प्रभु-रक्षण प्राप्त करता है और प्रभुकृपा से ज्ञान व शक्ति पाता है। इन कामादि से संग्राम में विजय पाना मानवशक्ति से परे की बात है, यह तो प्रभुकृपा से ही प्राप्त होती है।

इन वासनाओं का नियमन करके मनुष्य अपने जीवन को शान्त व सुखी बना पाता है, अतः ‘शुन:शेप'=‘सुख का निर्माण करनेवाला' कहलाता है । इन वासनाओं के विजय के लिए ही आत्मालोचन करनेवाला यह 'आजीगर्ति' है— हृदयरूप गर्त [गुफ़ा] की ओर गति करनेवाला [अज् गतौ] है।

भावार्थ -

हमें प्रभु का रक्षण प्राप्त हो - प्रभु हमें शक्ति प्राप्त कराएँ, जिससे हम वासनाओं पर क़ाबू पा सकें ।

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