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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1447
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣मित्रहा꣡ विच꣢꣯र्षणिः꣣ प꣡व꣢स्व सोम꣣ शं꣡ गवे꣢꣯ । दे꣣वे꣡भ्यो꣢ अनुकाम꣣कृ꣢त् ॥१४४७॥

स्वर सहित पद पाठ

अमित्रहा꣢ । अ꣣मित्र । हा꣢ । वि꣡च꣢꣯र्षणिः । वि । च꣣र्षणिः । प꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । श꣢म् । ग꣡वे꣢꣯ । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । अनुक्राम꣣कृ꣢त् । अ꣣नुकाम । कृ꣢त् ॥१४४७॥


स्वर रहित मन्त्र

अमित्रहा विचर्षणिः पवस्व सोम शं गवे । देवेभ्यो अनुकामकृत् ॥१४४७॥


स्वर रहित पद पाठ

अमित्रहा । अमित्र । हा । विचर्षणिः । वि । चर्षणिः । पवस्व । सोम । शम् । गवे । देवेभ्यः । अनुक्रामकृत् । अनुकाम । कृत् ॥१४४७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1447
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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पदार्थ -

हे (सोम) = शान्तस्वभाव प्रभो! आप (पवस्व) = हमारे जीवनों को पवित्र कीजिए तथा (गवे) - हमारी इन्द्रियों के लिए (शम्) = शान्ति प्राप्त कराइए । 

आप (अमित्र-हा) = शत्रुओं के नष्ट करनेवाले हैं । काम, क्रोधादि शत्रुओं को नष्ट करके आप हमारे जीवनों को पवित्र करते हैं । 
(विचर्षणिः)=[पश्यतिकर्मा – नि० ३.११] आप विशेषरूप से हमारा ध्यान करते हैं [Look after] [विविधविद्याप्रदः – द० य० १९.४२] आप सब ज्ञानों के देनेवाले हैं । ज्ञान प्राप्त कराकर

आप काम-क्रोधादि शत्रुओं का नाश करते हैं । इन शत्रुओं के नाश से हमारी इन्द्रियाँ शान्त होती हैं । (देवेभ्यः) = जिन व्यक्तियों के कामादि शत्रुओं का नाश हो गया है और जिनको विद्या का प्रकाश प्राप्त हुआ है, उन देवों के लिए हे प्रभो! आप (अनुकामकृत्) = अनुकूल इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले हो। इन देवों में शास्त्रविरुद्ध इच्छाएँ उत्पन्न ही नहीं होतीं । उनकी शास्त्रानुकूल सब इच्छाएँ प्रभु कृपा से अवश्य पूर्ण होती हैं ।

भावार्थ -

हम कामादि शत्रुओं का नाश करके तथा विद्या का प्रकाश प्राप्त करके देव बनें । प्रभु हमारी शास्त्रानुकूल सब इच्छाओं को पूर्ण करेंगे ।

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