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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1470
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
के꣣तुं꣢ कृ꣣ण्व꣡न्न꣢के꣣त꣢वे꣣ पे꣡शो꣢ मर्या अपे꣣श꣡से꣢ । स꣢मु꣣ष꣡द्भि꣢रजायथाः ॥१४७०॥
स्वर सहित पद पाठके꣣तु꣢म् । कृ꣣ण्व꣢न् । अ꣣केत꣡वे꣢ । अ꣣ । केत꣡वे꣢ । पे꣡शः꣢꣯ । म꣣र्याः । अपेश꣡से꣢ । अ꣣ । पेश꣡से꣣ । सम् । उ꣣ष꣡द्भिः꣢ । अ꣣जायथाः ॥१४७०॥
स्वर रहित मन्त्र
केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥१४७०॥
स्वर रहित पद पाठ
केतुम् । कृण्वन् । अकेतवे । अ । केतवे । पेशः । मर्याः । अपेशसे । अ । पेशसे । सम् । उषद्भिः । अजायथाः ॥१४७०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1470
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 4; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 4; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
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विषय - ज्ञान – गुणालंकृति-प्रभुदर्शन
पदार्थ -
हे प्रभो ! जो भी व्यक्ति भटकनेवाले मन को आपमें जोड़ता है तथा विषयों में विचरण करनेवाली इन्द्रियों को रथ में जोतकर आगे बढ़ता है उसके लिए आप (अकेतवे) = प्रकाश से रहित के लिए भी (केतुं कृण्वन्) = प्रकाश करते हो तथा (अपेशसे मर्या) = [मर्याय] उत्तम यज्ञिय वृत्ति आदि गुणों से अनलंकृत के लिए भी (पेशः) = रूप को – परिष्कृति को करते हो । उसके जीवन को सद्गुणों से अलंकृत कर देते हो ।
इस प्रकार (सम्) = सम्यक्तया (उषद्भिः) = अज्ञानान्धकारों के दहन के साथ [उष् दाहे] (अजायथाः) = आप प्रादुर्भूत होते हो । प्रभु प्रतिदिन ध्यान लगानेवाले व्यक्ति को १. ज्ञान से दीप्त करते हैं, २. सद्गुणों से अलंकृत करते हैं और ३. अज्ञानान्धकारों व मालिन्य का दहन करके उसके हृदयान्तरिक्ष में प्रादुर्भूत होते हैं ।
भावार्थ -
ज्ञान और सद्गुणालंकृति से हमारे हृदयों में प्रभु का प्रकाश हो ।
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