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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1479
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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धि꣣या꣡ च꣢क्रे꣣ व꣡रे꣢ण्यो भू꣣ता꣢नां꣣ ग꣢र्भ꣣मा꣡ द꣢धे । द꣡क्ष꣢स्य पि꣣त꣢रं꣣ त꣡ना꣢ ॥१४७९॥

स्वर सहित पद पाठ

धि꣣या꣢ । च꣣क्रे । व꣡रे꣢꣯ण्यः । भू꣣ता꣡ना꣢म् । ग꣡र्भ꣢꣯म् । आ । द꣣धे । द꣡क्ष꣢꣯स्य । पि꣣त꣡र꣢म् । त꣣ना꣢꣯ ॥१४७९॥


स्वर रहित मन्त्र

धिया चक्रे वरेण्यो भूतानां गर्भमा दधे । दक्षस्य पितरं तना ॥१४७९॥


स्वर रहित पद पाठ

धिया । चक्रे । वरेण्यः । भूतानाम् । गर्भम् । आ । दधे । दक्षस्य । पितरम् । तना ॥१४७९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1479
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 13; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

(वरेण्यः) = लोकहित करनेवाला यह उशनाः प्रजाओं का मुख्य [Best, worthy, chief] नेता होता है, यह सदा १. (धिया) =  बुद्धिमत्ता से–नकि मूर्खता से (चक्रे) = कार्यों को करता है । वस्तुतः बुद्धिमत्ता से कार्यों को करने के कारण ही यह 'वरेण्य' बना है— लोगों से मुखिया के रूप में वरने के योग्य हुआ है। २. यह (भूतानाम्) = प्राणियों की (गर्भम्) = स्तुति को [गर्भ: गृभेर्गृणात्यर्थे—नि० १०.२३] (आदधे) = समन्तात् प्राप्त करता है, अर्थात् सब व्यक्ति इसकी प्रशंसा करते हैं तथा यह ‘वरेण्य' [chief] (भूतानाम्) = उन प्राणियों के (गर्भम्) = अनर्थ के विनाश को [गिरत्यनर्थान् इति वा— नि० १०.२३] आदधे-सब प्रकार से धारण करता है । प्रजा की अहितकर बातों को यह सदा दूर करता है। उनके क्लेशों का निवारण करता है और ३. (तना) = अपने कर्म में निरन्तर [continually] दीर्घकाल तक श्रद्धापूर्वक लगे रहने से यह अपने को (दक्षस्य) = कुशलता का (पितरम्) = रक्षक-पिता या मास्टर (चक्रे) = बना लेता है । यह निरन्तर लगे रहने के कारण कार्यकुशल बन जाता है ।
 

भावार्थ -

हम बुद्धिमत्ता से कार्य करें, प्राणियों के दुःखों को दूर करें, अपने कार्य में लगे रहने से कुशल बनें।

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