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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1500
ऋषिः - वत्सः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
अ꣣ह꣢꣫मिद्धि पि꣣तु꣡ष्परि꣢꣯ मे꣣धा꣢मृ꣣त꣡स्य꣢ ज꣣ग्र꣡ह꣢ । अ꣣ह꣡ꣳ सूर्य꣢꣯ इवाजनि ॥१५००॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ह꣢म् । इत् । हि । पि꣣तुः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । मे꣣धा꣢म् । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । ज꣣ग्र꣡ह꣢ । अ꣣ह꣢म् । सू꣡र्यः꣢꣯ । इ꣣व । अजनि ॥१५००॥
स्वर रहित मन्त्र
अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रह । अहꣳ सूर्य इवाजनि ॥१५००॥
स्वर रहित पद पाठ
अहम् । इत् । हि । पितुः । परि । मेधाम् । ऋतस्य । जग्रह । अहम् । सूर्यः । इव । अजनि ॥१५००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1500
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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विषय - मैं सूर्य की तरह हो गया हूँ
पदार्थ -
१५२ संख्या पर मन्त्रार्थ इस रूप में दिया गया है
(अहम्) = मैं (इत् हि) = सचमुच, निश्चय से (पितुः) = ज्ञानदाता परमपिता प्रभु से (ऋतस्य) = सत्य कीसत्यज्ञान की (मेधाम्) = बुद्धि को (परिजग्रह) = सर्वतः ग्रहण करता हूँ । इस प्रकार सत्य-ज्ञान को प्राप्त करके (अहम्) = मैं (सूर्यः इव) = सूर्य की भाँति (अजनि) = हो गया हूँ।
भावार्थ -
सत्य-ज्ञान के द्वारा हम सूर्य के समान चमकें।
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