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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1518
ऋषिः - शतं वैखानसाः देवता - अग्निः पवमानः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣢ग्न꣣ आ꣡यू꣢ꣳषि पवस꣣ आसुवोर्जमिषं च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥१५१८॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । आ꣡यू꣢꣯ꣳषि । प꣣वसे । आ꣢ । सु꣣व । ऊ꣡र्ज꣢꣯म् । इ꣡ष꣢꣯म् । च꣣ । नः । आरे꣢ । बाध꣣स्व । दु꣣च्छु꣡ना꣢म् ॥१५१८॥


स्वर रहित मन्त्र

अग्न आयूꣳषि पवस आसुवोर्जमिषं च नः । आरे बाधस्व दुच्छुनाम् ॥१५१८॥


स्वर रहित पद पाठ

अग्ने । आयूꣳषि । पवसे । आ । सुव । ऊर्जम् । इषम् । च । नः । आरे । बाधस्व । दुच्छुनाम् ॥१५१८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1518
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

६२७ संख्या पर इस मन्त्र का अर्थ इस प्रकार है

सैकड़ों बुराइयों को उखाड़कर फेंकनेवाला ‘शतं वैखानस' प्रभु से आराधना करता है— अग्ने सब बुराइयों को भस्म करके उन्नति को सिद्ध करनेवाले प्रभो! आप (न:) = हमारे (आयूँषि) = जीवनों को (पवसे) = पवित्र करते हो। आप (ऊर्जम्) = बल और प्राणशक्ति को (इषम्) = प्रेरणा को व प्रकृष्ट गति को (नः) = हमें (आसुव) = प्राप्त कराइए । आप कृपया (दुच्छुनाम्) = दुर्वृत्तियों [शुन् गतौ] को आरे दूर (वाधस्व) = रोक दीजिए - हमसे दूर भगा दीजिए ।

भावार्थ -

‘पवमान' प्रभु के ध्यान से हमारा जीवन पवित्र बने।

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