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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1597
ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - द्यावापृथिव्यौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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पु꣣नाने꣢ त꣣꣬न्वा꣢꣯ मि꣣थः꣢꣫ स्वेन꣣ द꣡क्षे꣢ण राजथः । ऊ꣣ह्या꣡थे꣢ स꣣ना꣢दृ꣣त꣢म् ॥१५९७॥

स्वर सहित पद पाठ

पुनाने꣡इति꣢ । त꣣न्वा꣢ । मि꣣थः꣢ । स्वे꣡न꣢꣯ । द꣡क्षे꣢꣯ण । रा꣣जथः । ऊ꣢ह्याथे꣣इ꣡ति꣢ । स꣣ना꣢त् । ऋ꣣त꣢म् ॥१५९७॥


स्वर रहित मन्त्र

पुनाने तन्वा मिथः स्वेन दक्षेण राजथः । ऊह्याथे सनादृतम् ॥१५९७॥


स्वर रहित पद पाठ

पुनानेइति । तन्वा । मिथः । स्वेन । दक्षेण । राजथः । ऊह्याथेइति । सनात् । ऋतम् ॥१५९७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1597
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

द्युलोक वृष्टि व प्रकाश से पृथिवी को पवित्र करता है और पृथिवी 'अज' [व्रीहि] आदि यज्ञिय ओषधियों को जन्म देकर यज्ञों द्वारा द्युलोक को पवित्र करती है । इस प्रकार ये दोनों लोक एक-दूसरे के पावक हैं । मन्त्र में कहते हंर कि ये दोनों द्युलोक व पृथिवीलोक (मिथः) = आपस में (तन्वा) = अपने शरीरों को [स्वरूपों को] पुनाने पवित्र करते हुए (स्वेन दक्षेण) = अपने बल व वृद्धि से (राजथः) = दीप्त होते हैं। पृथिवी द्युलोक के बल को बढ़ाती है और द्युलोक पृथिवी के बल को बढ़ाता है। पृथिवी यज्ञिय ओषधियों को जन्म देकर अग्नि के मुख से उन ओषधियों को द्युलोक में पहुँचाती हैं, और द्युलोक वर्षा के द्वारा पृथिवी की उत्पादन शक्ति को बढ़ाता है । इस क्रम से ये दोनों लोक (सनात् ऋतम्) = इस सनातन यज्ञ को (ऊह्याथे) = वहन कर रहे हैं, अर्थात् इन दोनों लोकों का यह परस्पर भावन करनेवाला यज्ञ चल रहा है । हम स्तोताओं के अध्यात्म में भी मस्तिष्क शरीर का धारण करनेवाला बने तथा शरीर मस्तिष्क

का । स्वस्थ विचार शरीर को स्वस्थ बनाएँ तथा शरीर का स्वास्थ्य मस्तिष्क की विचारशक्ति को पवित्र करे। [A Sound mind in a sound body] स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मनवाले बनकर हम भी द्युलोक व पृथिवीलोक के सच्चे स्तोता बनें ।

भावार्थ -

हमारा शरीर स्वस्थ हो, उस स्वस्थ शरीर में हम स्वस्थ मन को धारण करनेवाले बनें । 

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