Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1603
ऋषिः - हर्यतः प्रागाथः देवता - अग्निर्हवींषि वा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
3

अ꣣भ्या꣢र꣣मि꣡दद्र꣢꣯यो꣣ नि꣡षि꣢क्तं꣣ पु꣡ष्क꣢रे꣣ म꣡धु꣢ । अ꣣व꣡ट꣢स्य वि꣣स꣡र्ज꣢ने ॥१६०३॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣भ्या꣡र꣢म् । अ꣣भि । आ꣡र꣢꣯म् । इत् । अ꣡द्र꣢꣯यः । अ । द्र꣣यः । नि꣡षि꣢꣯क्तम् । नि । सि꣣क्तम् । पु꣡ष्क꣢꣯रे । म꣡धु꣢꣯ । अ꣣वट꣡स्य꣢ । वि꣣स꣡र्ज꣢ने । वि꣣ । स꣡र्ज꣢꣯ने ॥१६०३॥


स्वर रहित मन्त्र

अभ्यारमिदद्रयो निषिक्तं पुष्करे मधु । अवटस्य विसर्जने ॥१६०३॥


स्वर रहित पद पाठ

अभ्यारम् । अभि । आरम् । इत् । अद्रयः । अ । द्रयः । निषिक्तम् । नि । सिक्तम् । पुष्करे । मधु । अवटस्य । विसर्जने । वि । सर्जने ॥१६०३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1603
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 16; खण्ड » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
Acknowledgment

पदार्थ -

प्रभु-प्राप्ति की प्रबल कामनावाला व्यक्ति 'हर्यत' है । यह अपने मित्रों से कहता है कि (अद्रयः) = हे आदरणीय मित्रो ! [अद्रय: आदरणीयाः – नि०] (अवटस्य) = काम-क्रोधादि शत्रुओं के आक्रमण से जिसकी रक्षा की गयी है उस हृदय के (विसर्जने) = प्रभु के प्रति अर्पण कर देने पर (पुष्करे) = उत्तम भावनाओं का पोषण करनेवाले इस हृदय में (मधु) =  सारभूत तत्त्वज्ञान (निषिक्तम्) = प्रभु के द्वारा सिक्त हुआ है, अतः मैं (इत्) = निश्चय से (अभि) = उस मधु की ओर ही (आरम्) = जाता हूँ ।

जिस समय मनुष्य शम-दम आदि के द्वारा अपने हृदय को काम-क्रोधादि के आक्रमण से बचाता है तब वह हृदय 'अवट' [अव रक्षणे] कहलाता है। कामादि के आक्रमण से सुरक्षित होकर उत्तम भावनाओं का पोषण करने से यह ‘पुष्कर' होता है । जब जीव अपने हृदय को प्रभु के अर्पण कर देता है तब प्रभु उस हृदय को ज्ञान के मधु से सिक्त कर देते हैं । उस समय यह प्रभुभक्त जिस आनन्द व ज्योति का अनुभव करता है वह अवर्णनीय होता है । यह अपने मित्रों से कहता है कि भाई ! मैं तो अब उस ज्योति की ओर चला । आप सब भी चाहो तो उधर ही चलो न ? यह भक्त ‘हर्यत' है - यह औरों को भी अपने साथ ले चलने की कामना करता है। हम सब मिलकर प्रभु का स्तवन करें, यही इसकी कामना होती है, अतः यह 'प्रागाथ'=‘प्रकृष्ट गायनवाला' कहलाता है।

भावार्थ -

हम अपने हृदय को परिमार्जित कर प्रभु के प्रति अर्पण करें, प्रभु इसे ज्ञान-मधु से परिपूर्ण कर देंगे ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top