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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1681
ऋषिः - अम्बरीषो वार्षागिर ऋजिश्वा भारद्वाजश्च देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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प꣢रि꣣ त्य꣡ꣳ ह꣢र्य꣣त꣡ꣳ हरिं꣢꣯ ब꣣भ्रुं꣡ पु꣢नन्ति꣣ वा꣡रे꣢ण । यो꣢ दे꣣वा꣢꣫न्विश्वाँ꣣ इ꣢꣯त्परि꣣ म꣡दे꣢न स꣣ह गच्छ꣢꣯ति ॥१६८१॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡रि꣢꣯ । त्यम् । ह꣣र्यत꣢म् । ह꣡रि꣢꣯म् । ब꣣भ्रु꣢म् । पु꣣नन्ति । वा꣡रे꣢꣯ण । यः । दे꣣वा꣢न् । वि꣡श्वा꣢꣯न् । इ꣣त् । प꣡रि꣢꣯ । म꣡दे꣢꣯न । स꣣ह꣢ । ग꣡च्छ꣢꣯ति ॥१६८१॥


स्वर रहित मन्त्र

परि त्यꣳ हर्यतꣳ हरिं बभ्रुं पुनन्ति वारेण । यो देवान्विश्वाँ इत्परि मदेन सह गच्छति ॥१६८१॥


स्वर रहित पद पाठ

परि । त्यम् । हर्यतम् । हरिम् । बभ्रुम् । पुनन्ति । वारेण । यः । देवान् । विश्वान् । इत् । परि । मदेन । सह । गच्छति ॥१६८१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1681
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

यह मन्त्र ५५२ संख्या पर व्याख्यात है।
(त्यम्) = उस (हर्यतम्) = कामना करने योग्य – सचमुच चाहने योग्य (हरिम्) = सर्वदुःखहारक (बभ्रुम्) = भरण-पोषण करनेवाले प्रभु को (वारेण) = वासनाओं के निवारण के द्वारा (परिपुनन्ति) = विचारते हैं, अपने ज्ञान का विषय बनाते हैं। इस मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति वह होता है (य:) = जो विश्वान् (देवान्) =  सब दिव्य गुणों को (मदेन सह) = प्रसन्नता व हर्ष के साथ (इत् परिगच्छति) = निश्चय से सर्वत: प्राप्त होता है ।

भावार्थ -

यदि हम वासनाओं को जीतकर प्रभु की सर्वव्यापकता का चिन्तन करेंगे तो हमें दिव्य गुण भी प्राप्त होंगे और हमारा जीवन सदा उल्लासमय होगा ।
 

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