Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1701
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
2

प꣡व꣢मानास आ꣣श꣡वः꣢ शु꣣भ्रा꣡ अ꣢सृग्र꣣मि꣡न्द꣢वः । घ्न꣢न्तो꣣ वि꣢श्वा꣣ अ꣢प꣣ द्वि꣡षः꣢ ॥१७०१॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯मानासः । आ꣣श꣡वः꣢ । शु꣣भ्राः꣢ । अ꣣सृग्रम् । इ꣡न्द꣢꣯वः । घ्न꣡न्तः꣢꣯ । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । द्वि꣡षः꣢꣯ ॥१७०१॥


स्वर रहित मन्त्र

पवमानास आशवः शुभ्रा असृग्रमिन्दवः । घ्नन्तो विश्वा अप द्विषः ॥१७०१॥


स्वर रहित पद पाठ

पवमानासः । आशवः । शुभ्राः । असृग्रम् । इन्दवः । घ्नन्तः । विश्वाः । अप । द्विषः ॥१७०१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1701
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -

(पवमानासः) = ये पवित्र करनेवाले सोम (असृग्रम्) = बनाये गये हैं—ये १. (आशवः) = मनुष्य को शीघ्रता से कार्य करनेवाला बनाते हैं, अर्थात् ये मनुष्य में स्फूर्ति बढ़ानेवाले हैं २. (शुभ्राः) = ये शरीर को नीरोग, मन को स्वस्थ तथा बुद्धि को तीव्र बनाकर शोभा की वृद्धि करनेवाले हैं । ३. (इन्दवः) = परमैश्वर्य को प्राप्त करानेवाले हैं तथा ४. (विश्वा:) = सब (द्विषः) = द्वेष की भावनाओं को (अपघ्नन्तः) = नष्ट करनेवाले हैं ।

भावार्थ -

सोम की रक्षा करनेवाला पुरुष १. आलस्यरहित, स्फूर्ति-सम्पन्न होता है । २. उत्तम गुणों से शोभावाला बनता है। ३. परमैश्वर्य का लाभ करता है और ४. अपने में द्वेष की अपवित्र भावनाओं को नहीं पनपने देता ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top