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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1742
ऋषिः - सत्यश्रवा आत्रेयः
देवता - उषाः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
3
सा꣡ नो꣢ अ꣣द्या꣢भ꣣र꣡द्व꣢सु꣣꣬र्व्यु꣢꣯च्छा दुहितर्दिवः । यो꣢꣫ व्यौच्छः꣣ स꣡ही꣢यसि स꣣त्य꣡श्र꣢वसि वा꣣य्ये꣡ सुजा꣢꣯ते꣣ अ꣡श्व꣢सूनृते ॥१७४२॥
स्वर सहित पद पाठसा꣢ । नः꣡ । अ꣣द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । आ꣣भर꣡द्व꣢सुः । आ꣣भर꣢त् । व꣣सुः । वि꣢ । उ꣣च्छ । दुहितः । दिवः । या꣢ । उ꣣ । व्यौ꣡च्छः꣢꣯ । वि꣣ । औ꣡च्छः꣢꣯ । स꣡ही꣢꣯यसि । स꣣त्य꣡श्र꣢वसि । स꣣त्य꣢ । श्र꣣वसि । वाय्ये꣢ । सु꣡जा꣢꣯ते । सु । जा꣣ते । अ꣡श्व꣢꣯सूनृते । अ꣡श्व꣢꣯ । सू꣣नृते ॥१७४२॥
स्वर रहित मन्त्र
सा नो अद्याभरद्वसुर्व्युच्छा दुहितर्दिवः । यो व्यौच्छः सहीयसि सत्यश्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते ॥१७४२॥
स्वर रहित पद पाठ
सा । नः । अद्य । अ । द्य । आभरद्वसुः । आभरत् । वसुः । वि । उच्छ । दुहितः । दिवः । या । उ । व्यौच्छः । वि । औच्छः । सहीयसि । सत्यश्रवसि । सत्य । श्रवसि । वाय्ये । सुजाते । सु । जाते । अश्वसूनृते । अश्व । सूनृते ॥१७४२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1742
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - उषा हममें वसु भर दे
पदार्थ -
१. (सा) = वह उषा (नः) = हममें (अद्य) = आज (वसुः) = उत्तम धन को (आभरत्) = भर दे । हे (दिवः दुहितः) = प्रकाश को भरनेवाली उषे ! तू (व्युच्छ) = हमारे अन्धकार को दूर भगा दे । या उ जो तू निश्चय से (व्यौच्छः) = अन्धकार को दूर करती है। किस-किस में?
[क] (सहीयसि) = सहनशक्तिवाले में । [ख] (सत्यश्रवसि) = सत्य ज्ञानवाले में। [ग] (वाय्ये) = मन का विस्तार करनेवाले में । [घ] (सुजाते) = उत्तम विकासशील पुरुष में तथा [ङ] (अश्वसुनते) = व्यापक सत्य कर्म करनेवाले में ।
उषा प्रकाश प्राप्त कराती है तो वह वसु - निवास के लिए आवश्यक धन भी प्राप्त कराती ही है। वस्तुत: श्री और सरस्वती का विरोध लोकोक्तियों का विषय तो बन गया है, परन्तु ऐसे स्थलों में विलासमय श्री अभिप्रेत होती है। जीवन के लिए आवश्यक श्री तो 'वसु' है, वह स्वयं दिव्य है – उसका सरस्वती से अविरोध ही है ।
भावार्थ -
मैं उषा में जागूँ और वसु व प्रकाश को प्राप्त करूँ।
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