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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1763
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣡ म꣢र्मृजा꣣न꣢ आ꣣यु꣢भि꣣रि꣢भो꣣ रा꣡जे꣢व सुव्र꣣तः꣢ । श्ये꣣नो꣡ न वꣳसु꣢꣯ षीदति ॥१७६३॥

स्वर सहित पद पाठ

सः꣢ । म꣣र्मृजानः꣢ । आ꣣यु꣡भिः꣢ । इ꣡भः꣢꣯ । रा꣡जा꣢꣯ । इ꣣व । सुव्रतः꣢ । सु꣣ । व्रतः꣢ । श्ये꣣नः꣢ । न । व꣡ꣳसु꣢꣯ । सी꣣दति ॥१७६३॥


स्वर रहित मन्त्र

स मर्मृजान आयुभिरिभो राजेव सुव्रतः । श्येनो न वꣳसु षीदति ॥१७६३॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । मर्मृजानः । आयुभिः । इभः । राजा । इव । सुव्रतः । सु । व्रतः । श्येनः । न । वꣳसु । सीदति ॥१७६३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1763
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

(सः) = वह सोम (आयुभिः) = [इ गतौ] गतिशील पुरुषों से (मर्मृजान:) = शुद्ध किया जाता हुआ होता है। जो व्यक्ति सदा क्रियाशील हैं वे ही इस सोम की रक्षा कर पाते हैं। अकर्मण्य पुरुष पर वासनाओं का आक्रमण होता है और वासनाओं के मन में प्रविष्ट होने पर सोम की रक्षा सम्भव नहीं । यह सोम गतिशील पुरुषों की ही निधि बनता है। यह उसे (इभः) =[feerless power] निर्भीक, शक्ति का पुतला बनाता है। सोम का रक्षक सदा अभय होता है – कोई भी शक्ति उसे भयभीत नहीं कर सकती। राजा (इव) = यह सुरक्षित सोम राजा के समान होता है— जैसे राजा अपने शासन के परिपालन से चमकता है इसी प्रकार यह सोम अपराभूत आज्ञावाला होता है । सोमरक्षक की आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं करता । इसीलिए ही वेद में राजा के लिए ब्रह्मचर्य आवश्यक ठहराया है ('ब्रह्मचर्येण राजा राष्ट्रं वि रक्षति')(सुव्रतः) = यह सोम अपने रक्षक को उत्तम व्रतोंवाला बनाता है ।

यह सोम तो (श्येनः न) = श्येन के समान होता है । वेद में श्येन का अर्थ घोड़ा है। जैसे घोड़ा हमें अपनी यात्रा की पूर्ति में सहायक होता है, उसी प्रकार यह सुरक्षित सोम हमें अपनी जीवन-यात्रा की पूर्ति में सहायक है । यह सोम (सीदति) = सुरक्षित होकर स्थित होता है - अपना आसन ग्रहण करता है । किनमें ? (वंसु-वन्) पुरुषों में । वन् के अर्थ निम्न हैं—

१. वन् [to honour, to worship] = प्रभु की पूजा करनेवालों में ।

२. वन् [to aid] = दूसरों की सहायता करनेवालों में – लोकहित के कार्यों में लगे रहनेवालों में । ३. वन् [to sound] =प्रभु का नाम जपनेवालों अथवा पवित्र वाणियों का पठन करनेवालों में । ४. वन् [to be occupied] जो सदा कार्यों में लगे रहते हैं – खाली न रहनेवालों में । सदा क्रियाशीलता सोम रक्षा की बड़ी सहायक है ।

५. वन् [to seek for] - प्रभु के खोजनेवालों में या प्रकृति के तत्त्वों के ज्ञान में लगे हुओं में ।

६. वन् [to conquer] — इन्द्रियों के विजेताओं में ।

७. वन् [to love] जो सभी से प्रेम करें, उनमें तथा ८. वन् [to desire] जो सोमरक्षा की प्रबल इच्छावाले हैं, उनमें । 

भावार्थ -

हम 'वन्' बनें, जिससे हममें सोम सुरक्षित हो ।

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