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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1778
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - अग्निः
छन्दः - पदपङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
3
अ꣢धा꣣꣬ ह्य꣢꣯ग्ने꣣ क्र꣡तो꣢र्भ꣣द्र꣢स्य꣣ द꣡क्ष꣢स्य सा꣣धोः꣢ । र꣣थी꣢रृ꣣त꣡स्य꣢ बृह꣣तो꣢ ब꣣भू꣡थ꣢ ॥१७७८॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ध꣢꣯ । हि । अग्ने । क्र꣡तोः꣢꣯ । भ꣣द्र꣡स्य꣢ । द꣡क्ष꣢꣯स्य । सा꣣धोः꣢ । र꣣थीः꣢ । ऋ꣣त꣡स्य꣢ । बृ꣣हतः꣢ । ब꣣भू꣡थ꣢ ॥१७७८॥
स्वर रहित मन्त्र
अधा ह्यग्ने क्रतोर्भद्रस्य दक्षस्य साधोः । रथीरृतस्य बृहतो बभूथ ॥१७७८॥
स्वर रहित पद पाठ
अध । हि । अग्ने । क्रतोः । भद्रस्य । दक्षस्य । साधोः । रथीः । ऋतस्य । बृहतः । बभूथ ॥१७७८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1778
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 1; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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विषय - वामदेव के जीवन की तीन बातें
पदार्थ -
वामदेव कहता है—हे प्रभो ! मैं आपके प्रापक स्तोमों से आपको बढ़ा (अधा हि) = और तब निश्चय से हे (अग्ने) = मेरी उन्नति के साधक प्रभो! आप मेरे जीवन में निम्न तीन बातों के (रथी:) = नेता व प्रापक बभूथ =होते हो|
१. (भद्रस्य क्रतोः) = सर्वप्रथम मुझे 'भद्रक्रतु'-शिवसंकल्प व शुभ क्रियाशीलता को प्राप्त कराते हैं। मेरे हृदय में अशिव संकल्प कभी नहीं उठता और मेरा जीवन सदा शुभ क्रियाओं से ओत-प्रोत रहता है।
२. (साधोः दक्षस्य) = मेरा जीवन दक्षता dexterity = चतुरता से व्याप्त होता है, परन्तु यह चतुरता साधु की होती है, असाधु की नहीं - cleverness न कि cunningness चतुरता न कि चालाकी, कुशलता न कि कपटता । मैं अब किसी भी कार्य को अनाड़ीपन से नहीं करता ।
३. (बृहतः ऋतस्य) = वृद्धि के साधनभूत ऋत=नियमितता=regularity को आप मुझमें बढ़ाते हैं। सूर्य और चन्द्रमा की गतियों के समान मेरा जीवन नियमित गति से चलता है। मैं प्रत्येक क्रिया को ठीक समय पर व ठीक स्थान पर करता हूँ ।
उल्लिखित मन्त्र के शब्दों से यह स्पष्ट है कि प्रभुभक्त १. शुभ कर्म संकल्पों व शुभ क्रियाओंवाला होता है, २. वह उन क्रियाओं को साधु पुरुष की दक्षता के साथ करता है, और ३. उसकी प्रत्येक क्रिया ठीक समय पर व ठीक स्थान पर होती है ।
मन्त्र के ‘साधोः' शब्द पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रभुभक्त कार्यों को कुशलता से करता है। इसकी यह कुशलता सदा कार्यों को सिद्ध करनेवाली होती है [साध्नोति] । यह तोड़फोड़ की ओर झुकाव नहीं रखता ।
भावार्थ -
शुभ संकल्प, साधु दक्षता व बृहत् ऋत को अपनाकर मैं 'वामदेव' बनूँ और अपने को सच्चा प्रभुभक्त प्रमाणित करूँ ।
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