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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 224
ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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क꣢दु꣣ प्र꣡चे꣢तसे म꣣हे꣡ वचो꣢꣯ दे꣣वा꣡य꣢ शस्यते । त꣡दिध्य꣢꣯स्य꣣ व꣡र्ध꣢नम् ॥२२४

स्वर सहित पद पाठ

क꣢त् । उ꣣ । प्र꣡चे꣢꣯तसे । प्र । चे꣣तसे । महे꣢ । व꣡चः꣢꣯ । दे꣣वा꣡य꣢ । श꣣स्यते । त꣢त् । इत् । हि । अ꣣स्य । व꣡र्ध꣢꣯नम् ॥२२४॥


स्वर रहित मन्त्र

कदु प्रचेतसे महे वचो देवाय शस्यते । तदिध्यस्य वर्धनम् ॥२२४


स्वर रहित पद पाठ

कत् । उ । प्रचेतसे । प्र । चेतसे । महे । वचः । देवाय । शस्यते । तत् । इत् । हि । अस्य । वर्धनम् ॥२२४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 224
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 12;
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पदार्थ -

‘वामदेव गोतम'=सुन्दर दिव्यगुणों और प्रशस्त इन्द्रियोंवाला इस मन्त्र का ऋषि कहता है कि देव के लिए (वचः) = स्तुतिवचन (शस्यते) = कहा जाता है। हम प्रभु की स्तुति करते हैं। किस प्रभु की? १. (प्रचेतसे) = प्रकृष्ट ज्ञानवाले प्रभु की । ('तन्निरतिशयं सर्वज्ञवीजम्') = ज्ञान की पराकाष्ठा ही तो प्रभु है। २. (महे) = वह प्रभु महान् हैं। ऊँचे-से- ऊँचा मनुष्य भी ९९ बार क्षमा करके सौवीं बार दण्ड ही देता है, परन्तु प्रभु तो ('अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति') = अपने न माननेवालों का भी पालन करते हैं। वहाँ राग-द्वेष का काम नहीं । ३. देवाय - प्रभु दिव्य गुणों से युक्त हैं। उनके सभी कर्म भी दिव्य हैं। देवमनोवृत्ति देने की ही होती है। प्रभु ने तो अपने को भी दिया हुआ है [य आत्मदा]। वे जीवहित के लिए ही सृष्टि का निर्माण करते हैं।

इस प्रभु के लिए स्तुतिवचन उच्चारण करनेवाले के लिए ये वचन (कत् उ)=निश्चय से सुखों का विस्तार करनेवाले होते हैं [कं तनोति इति कत्], क्योंकि इनसे उसका जीवन ऊँचा उठता है। (तत् इत् हि) = यह वचन निश्चय से (अस्य) = इस स्तोता का (वर्धनम्) = बढ़ानेवाला होता है। उसके सामने ये स्तुतिवचन लक्ष्य दृष्टि को पैदा करते हैं और उसे अपनी गति में तीव्रता लाने के लिए प्रेरणा देते हैं। इस स्तोता को ध्यान आता है कि मुझे भी ज्ञानी, महान् व देव बनना है। एवं, यह स्तोता प्रभु-स्तवन करता हुआ तीनों पगों को उत्साहपूर्वक रखता है और उन्नत होते-होते ‘वामदेव गोतम' बन जाता है।

भावार्थ -

प्रभु के आदर्श को सामने रखकर मैं भी प्रचेताः, महान् व देव बनूँ। 

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