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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 27
ऋषिः - विरूप आङ्गिरसः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣣ग्नि꣢र्मू꣣र्धा꣢ दि꣣वः꣢ क꣣कु꣡त्पतिः꣢꣯ पृथि꣣व्या꣢ अ꣣य꣢म् । अ꣣पा꣡ꣳ रेता꣢꣯ꣳसि जिन्वति ॥२७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ग्निः꣢ । मू꣣र्धा꣢ । दि꣣वः꣢ । क꣣कु꣢त् । प꣡तिः꣢꣯ । पृ꣣थिव्याः꣢ । अ꣣य꣢म् । अ꣣पां꣢ । रे꣡ताँ꣢꣯सि । जि꣣न्वति ॥२७॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपाꣳ रेताꣳसि जिन्वति ॥२७॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निः । मूर्धा । दिवः । ककुत् । पतिः । पृथिव्याः । अयम् । अपां । रेताँसि । जिन्वति ॥२७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 27
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 3;
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विषय - शिखर पर
पदार्थ -
(अग्निः )= जीवन तो वह है जो अपने को आगे ले-चलता है [अग्रे नयति ] । आगे कहाँ तक? (मूर्धा)=शिखर तक, जो चोटी पर पहुँचकर ही दम लेता है। उनकी सारी साधना शिखर पर पहुँचने के लिए होती है। किसके शिखर पर ? (दिवः ककुत्)= ज्ञान के शिखर पर। वह व्यक्ति ज्ञानरूप पर्वत के शिखर पर पहुँचने का प्रयत्न करता है। मनुष्य का लक्ष्य वस्तुतः यही होना चाहिए कि वह अपने ज्ञान को चरम सीमा तक ले चले ।
ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही (पतिः पृथिव्याः अयम्)= यह इस पार्थिव शरीर का पति बना है। जो भी इस (पार्थिव)= भौतिक शरीर की भौतिक वासनाओं को संयम में रखता है, वही अपने ज्ञान को बढ़ाने में समर्थ होता है। संयम के अभाव में ज्ञान - वृद्धि सम्भव नहीं। किसी
इस संयम-यज्ञ की सिद्धि के लिए वह (अपां रेतांसि जिन्वति)= जल - देवता के अंशावतार ['आप: रेतो भूत्वा' - ऐतरेय] अर्थात् वीर्य का अपव्यय नहीं करता - ब्रह्मचर्य का धारण करता है। यही तो ब्रह्म की ओर जाने का मार्ग है। यह व्यक्ति सांसारिक व्यवहारों की सिद्धि के लिए धनादि का अर्जन करता हुआ इस ज्ञान के शिखर पर पहुँचनेरूप महान् लक्ष्य को कभी नहीं भूलता। इसका जीवन अन्य मनुष्यों के जीवन से एक विशेषता लिये हुए होता है, क्योंकि इसका जीवन विशिष्ट रूपवाला होता है, अतः यह 'विरूप' कहलाता है। यही इस मन्त्र का ऋषि है।
भावार्थ -
मानव जीवन का लक्ष्य ज्ञान-पर्वत के शिखर पर पहुँचना है-इसी के लिए उसे संयमी बनना है।
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