Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 474
ऋषिः - दृढच्युत आगस्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
3

प꣡व꣢स्व दक्ष꣣सा꣡ध꣢नो दे꣣वे꣡भ्यः꣢ पी꣣त꣡ये꣢ हरे । म꣣रु꣡द्भ्यो꣢ वा꣣य꣢वे꣣ म꣡दः꣢ ॥४७४॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । द꣣क्षसा꣡ध꣢नः । द꣣क्ष । सा꣡ध꣢꣯नः । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । पी꣣त꣡ये꣢ । ह꣣रे । मरु꣡द्भ्यः꣢ । वा꣣य꣡वे꣢ । म꣡दः꣢꣯ ॥४७४॥


स्वर रहित मन्त्र

पवस्व दक्षसाधनो देवेभ्यः पीतये हरे । मरुद्भ्यो वायवे मदः ॥४७४॥


स्वर रहित पद पाठ

पवस्व । दक्षसाधनः । दक्ष । साधनः । देवेभ्यः । पीतये । हरे । मरुद्भ्यः । वायवे । मदः ॥४७४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 474
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
Acknowledgment

पदार्थ -

हे सोम! (पवस्व) = मेरे जीवन में प्रवाहित हो अथवा मेरे जीवन को पवित्र कर। १. (दक्षसाधन:) = तू मरी दक्षता को सिद्ध करनेवाला है। सोम के संयम से मेरा प्रत्येक कार्य कुशलता से होता है। २. (देवेभ्यः) = यह सोम मेरे जीवन में देवों के लिए होता है, अर्थात् इससे मुझमें दिव्य गुणों की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है, ३. (पीतये) = यह सोम मेरे पान-रक्षण के लिए हो—मैं आसुर वृत्तियों के आक्रमण से बचा रहूँ, ४. (हरे) = हे सोम तुम तो हरि हो - मेरे सब रोगों व मलों का हरण करनेवाले हो, ५. (मरुद्भयः) = तुम प्राणों के लिए हितकर होते हो, अर्थात् सोम के संयम से प्राणशक्ति बढ़ती है। 'प्राणायाम से सोमरक्षा तथा सोमरक्षा से प्राणशक्ति की वृद्धि' इस प्रकार सोम और प्राण परस्परोपकारक होते हैं, ६. (वायवे) = [वा गतौ] प्राणशक्ति की वृद्धि के द्वारा यह सोम मेरी क्रिया शक्ति को बढ़ानेवाला होता है। मेरा जीवन कर्मठ बनता है, ७. (मदः) = यह सोम मेरे मद-उल्लास व उत्साह को स्थिर रखता है।

इस प्रकार दक्षता, दिव्यता, दानववृत्तिदमन, रोगहरण, प्राणवर्धन, कर्मसामर्थ्य व उल्लास को जन्म देता हुआ यह सोम मुझे 'अग+स्त्य' = पाप समूह को नष्ट करनेवाला तथा असुरों के दृढ़-से-दृढ़ दुर्गों का च्यवन- नाश करनेवाला 'दृढच्युत' बनाता है।

भावार्थ -

सोम के द्वारा मैं दक्षता आदि सात रत्नों से अपने जीवन को सुशोभित करनेवाला बनूँ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top