Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 563
ऋषिः - वत्सप्रिर्भालन्दः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
6

प्र꣢ दे꣣व꣢꣫मच्छा꣣ म꣡धु꣢मन्त꣣ इ꣢न्द꣣वो꣡ऽसि꣢ष्यदन्त꣣ गा꣢व꣣ आ꣢꣫ न धे꣣न꣡वः꣢ । ब꣣र्हिष꣡दो꣢ वच꣣ना꣡व꣢न्त꣣ ऊ꣡ध꣢भिः परि꣣स्रु꣡त꣢मु꣣स्रि꣡या꣢ नि꣣र्णि꣡जं꣢ धिरे ॥५६३॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । दे꣣व꣢म् । अ꣡च्छ꣢꣯ । म꣡धु꣢꣯मन्तः । इ꣡न्द꣢꣯वः । अ꣡सि꣢꣯ष्यदन्त । गा꣡वः꣢꣯ । आ । न । धे꣣न꣡वः꣢ । ब꣣र्हि꣡षदः꣢ । ब꣣र्हि । स꣡दः꣢꣯ । व꣣चना꣡व꣢न्तः । ऊ꣡ध꣢꣯भिः । प꣣रिस्रु꣡त꣢म् । प꣣रि । स्रु꣡त꣢꣯म् । उ꣣स्रि꣡याः꣢ । उ꣣ । स्रि꣡याः꣢꣯ । नि꣣र्णि꣡ज꣢म् । निः꣣ । नि꣡ज꣢꣯म् । धि꣣रे ॥५६३॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र देवमच्छा मधुमन्त इन्दवोऽसिष्यदन्त गाव आ न धेनवः । बर्हिषदो वचनावन्त ऊधभिः परिस्रुतमुस्रिया निर्णिजं धिरे ॥५६३॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । देवम् । अच्छ । मधुमन्तः । इन्दवः । असिष्यदन्त । गावः । आ । न । धेनवः । बर्हिषदः । बर्हि । सदः । वचनावन्तः । ऊधभिः । परिस्रुतम् । परि । स्रुतम् । उस्रियाः । उ । स्रियाः । निर्णिजम् । निः । निजम् । धिरे ॥५६३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 563
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 9;
Acknowledgment

पदार्थ -

(सदावदतीतिः वत्सः) = वेदवाणियों का उच्चारण करता है - प्रीणाति इति प्रीः- प्रभु को प्रसन्न करता है और (भालं ददाति) = अपने व्याख्यानों से प्रभु का जीवित जागरित चित्रण करता है। भालंद सदा -

१. प्(र देवम्) = उस प्रकृष्ट महादेव की (अच्छा) = ओर गतिवाला होता है। २. (मधुमन्तः) = ये सदा माधुर्यवाले होते हैं । ३. (इन्दवः) = शक्तिशाली होते हैं। ४. (धेनवः गावः नः) = नवसूतिका गौवों के समान औरों का पोषण करते हुए [धेट् पाने] (आ असिष्यदन्त) = बड़ी स्निग्ध गतिवाले होते हैं। ये बिना किसी को ठोकर लगाये शान्तिपूर्वक जीवन-पथ पर चढ़ते चले जाते हैं। ५. (बर्हिषद:) = ये उस हृदय में निवास करनेवाले होते हैं जो कि वासनाओं को उखाड़ देने से ‘बर्हि' नामवाला हुआ है, अर्थात ये सदा निर्मल हृदय में आसीन होते हैं। ६. (वचनावन्तः) = ये अपने वचनों के बड़े पक्के होते हैं। ७. (उस्त्रिया:) = ज्ञान की रश्मियोंवाले ये लोग (ऊधभिः परिस्स्रुतम्) = रसों को चूते हुए (निर्णिजम्) = शोधन को, (धिरे) = धारण करते हैं। अर्थात् ये व्यक्ति सदुपदेशों व सन्मन्त्रों द्वारा औरों के जीवनों को भी पवित्र बनाने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु इनके वे उपदेश माधुर्य को टपकानेवाले शब्दों में दिए जाते हैं। इनकी वाणी से रस चू रहा होता है। रस स्राविणी वाणियों से ये सब मलों को स्रुत करने, बहाने का प्रयत्न करते हैं। 

भावार्थ -

हमारी एक-एक क्रिया हमें प्रभु की ओर ले जा रही हो, हम माधुर्यवाले, पर शक्तिशाली हों, औरों का भी पालन करें। पवित्र हृदयवाले हों, वचन के पक्के हों, औरों को धर्म का ज्ञान रसस्त्रावि- शब्दों में दें।

इस भाष्य को एडिट करें
Top