Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 59
ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - अग्निः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
2

प्र꣡ वो꣢ य꣣ह्वं꣡ पु꣢रू꣣णां꣢ वि꣣शां꣡ दे꣢वय꣣ती꣡ना꣢म् । अ꣣ग्नि꣢ꣳ सू꣣क्ते꣢भि꣣र्व꣡चो꣢भिर्वृणीमहे꣣ य꣢꣫ꣳसमिद꣣न्य꣢ इ꣣न्ध꣡ते꣢ ॥५९॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । वः꣣ । यह्व꣢म् । पु꣣रूणा꣢म् । वि꣣शा꣢म् । दे꣣वयती꣡ना꣢म् । अ꣣ग्नि꣢म् । सू꣣क्ते꣢भिः꣣ । सु꣣ । उक्थे꣡भिः꣢ । व꣡चो꣢꣯भिः । वृ꣣णीमहे । य꣢म् । सम् । इत् । अ꣣न्ये꣢ । अ꣣न् । ये꣢ । इ꣣न्ध꣡ते꣢ ॥५९॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र वो यह्वं पुरूणां विशां देवयतीनाम् । अग्निꣳ सूक्तेभिर्वचोभिर्वृणीमहे यꣳसमिदन्य इन्धते ॥५९॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । वः । यह्वम् । पुरूणाम् । विशाम् । देवयतीनाम् । अग्निम् । सूक्तेभिः । सु । उक्थेभिः । वचोभिः । वृणीमहे । यम् । सम् । इत् । अन्ये । अन् । ये । इन्धते ॥५९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 59
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
Acknowledgment

पदार्थ -

(वः)=मनुष्यों में से जो (पुरूणाम्) = अपना पालन व पूरण करनेवाले अर्थात् आसुर वृत्तियों के आक्रमण से अपनी इन्द्रियों की रक्षा करनेवाले तथा अपनी न्यूनता को देखकर उसे दूर करनेवाले हैं, (विशाम्) = दूसरों के दुःखों में प्रवेश करनेवाले और उनके दुःखों को दूर करके शान्ति लाभ करानेवाले हैं। (देव-यतीनाम्) = [ देवान् आत्मन इच्छन्तीनाम्] दिव्य गुणों को अपनाने की इच्छा करनेवाले हैं, उनका जो (प्र)= खूब (यहम्) = [यातश्च हूतश्च भवति] जाने योग्य व पुकारने योग्य है, अर्थात् उसी को पुकारते हैं - दूसरे से याचना नहीं करते। इस (अग्निम्)=आगे ले-चलनेवाले प्रभु को (सूक्तेभिः) = मधुरता से बोले गये (वचोभिः) = वचनों से (वृणीमहे) = हम वरते हैं। (यम्) = जिस प्रभु को अन्ये (इत्) = अन्य लोग भी जप, तप, दान, अध्ययनादि के द्वारा (समिन्धते) = दीप्त करते हैं।

संसार में बालक दो प्रकार के हैं। एक वे जो सदा अपनी माता के चरणों में उपस्थित रहते हैं, किसी भी कार्य के लिए जाना हो तो माता से पूछकर जाते हैं। यदि माता मना कर दे तो नहीं जाते हैं। दूसरे वे बालक हैं जो माता से सदा दूर भागे रहते हैं, साथियों के साथ खेलने में लगे रहते हैं और माता की पुकार को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। हमें यह देखना है कि उस जगज्जननी के प्रति अपने व्यवहार से हम किन बालकों की श्रेणी में आते हैं। । यह ठीक है कि खेलनेवाले बालक भी भूख से पीड़ित हो माता के समीप दौड़ते हैं। इसी प्रकार कट्टर-से-कट्टर नास्तिक को भी, “God is no where", के प्रचारक को भी आपत्ति

आने पर “God is now here”, दीखने लगता है और वे (‘अमन्तवो मां त उपक्षियन्ति') नास्तिक भी उस प्रभु के चरणों में पहुँचते हैं। इस प्रकार प्रभु सभी के लिए 'यह्व' हैं ही, पर हमें तो ‘पुरु, विश् और देवयति' बनकर सदा प्रभु की शरण में रहना चाहिए। ऐसा व्यक्ति कड़वे शब्द बोल ही कैसे सकता है? सबसे बड़ी मूर्खता कटु शब्द बोलना है, मधुर शब्दों को अपनाकर ‘कण्व' मेधावी ही बनना है, न कि मूर्ख |

भावार्थ -

 हम मधुर भाषण द्वारा प्रभु का वरण करें।

इस भाष्य को एडिट करें
Top