Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 624
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
4
य꣢꣫द्वर्चो꣣ हि꣡र꣢ण्यस्य꣣ य꣢द्वा꣣ व꣢र्चो꣣ ग꣡वा꣢मु꣣त꣢ । स꣣त्य꣢स्य꣣ ब्र꣡ह्म꣢णो꣣ व꣢र्च꣣स्ते꣡न꣢ मा꣣ स꣡ꣳ सृ꣢जामसि ॥६२४
स्वर सहित पद पाठय꣢त् । व꣡र्चः꣢꣯ । हि꣡र꣢꣯ण्यस्य । यत् । वा꣣ । व꣡र्चः꣢꣯ । ग꣡वा꣢꣯म् । उ꣣त꣢ । स꣣त्य꣡स्य꣢ । ब्र꣡ह्म꣢꣯णः । व꣡र्चः꣢꣯ । ते꣡न꣢꣯ । मा꣣ । स꣢म् । सृ꣣जामसि ॥६२४॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वर्चो हिरण्यस्य यद्वा वर्चो गवामुत । सत्यस्य ब्रह्मणो वर्चस्तेन मा सꣳ सृजामसि ॥६२४
स्वर रहित पद पाठ
यत् । वर्चः । हिरण्यस्य । यत् । वा । वर्चः । गवाम् । उत । सत्यस्य । ब्रह्मणः । वर्चः । तेन । मा । सम् । सृजामसि ॥६२४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 624
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 4; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 4; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 4;
Acknowledgment
विषय - वर्चस् की प्राप्ति
पदार्थ -
हे प्रभो! (यत्) = जो (वर्च:) = तेज (हिरण्यस्य) = वीर्यशक्ति का है (तेन) = उससे (मा) = मुझे (संसृजामसि) = संयुक्त कीजिए। यह शक्ति रोगों को दूर कर रमणीयता को प्राप्त कराने से सचमुच 'हिरण्य' है और वस्तुतः यही मूलशक्ति है - इसी पर अन्य शक्तियाँ निर्भर करती हैं। (वा) = और (यत्) = जो (वर्चः) = शक्ति (गवाम्) = इन्द्रियों की है, उससे मुझे युक्त कीजिए। मेरी एक - एक इन्द्रिय आजीवन सशक्त बनी रहे। अपने-अपने कार्यों को करने में इन्द्रियों की शक्ति अन्त तक ठीक बनी रहे। संक्षेप में–शरीर नीरोग हो और इन्द्रियाँ सबल (उत) = शरीर व इन्द्रियों की शक्ति के साथ जो (सत्यस्य) = सत्य का तेज है, वह मेरे मन को सबल बनाये | (ब्रह्मणः वर्चः) = ज्ञान का तेज मेरे विज्ञानमयकोश को उज्ज्वल करे।
गत मन्त्र में प्रभु के स्तोता का उल्लेख था । वह अपने जीवन को जिन वर्चस् व तेजों से अलंकृत करता है, उनका वर्णन प्रस्तुत मन्त्र में है। 'अनुष्टुप् छन्द के परिणामस्वरूप ही यह 'वामदेव गोतम' अपने सब शोकों को समाप्त [जवच] करनेवाला होता है। 'शरीर नीरोग है, इन्द्रियाँ शक्तिशाली हैं, शक्ति के द्वारा मन पवित्र हो गया है और ज्ञान से मस्तिष्क उज्ज्वल है, इससे अधिक और चाहिए ही क्या?
भावार्थ -
मुझे शक्ति व इन्द्रियों की संसिक्तता के साथ सत्य व ज्ञान का नेत्र प्राप्त हो ।
इस भाष्य को एडिट करें