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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 644
ऋषिः - प्रजापतिः देवता - इन्द्रः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - 0
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वि꣣दा꣢ रा꣣ये꣢ सु꣣वी꣢र्यं꣣ भ꣢वो꣣ वा꣡जा꣢नां꣣ प꣢ति꣣र्व꣢शा꣣ꣳ अ꣡नु꣢ । म꣡ꣳहिष्ठ वज्रिन्नृ꣣ञ्ज꣢से꣣ यः꣡ शवि꣢꣯ष्ठः꣣ शू꣡रा꣢णाम् ॥६४४

स्वर सहित पद पाठ

वि꣣दाः꣢ । रा꣣ये꣢ । सु꣣वी꣡र्य꣣म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । भु꣡वः꣢꣯ । वा꣡जा꣢꣯नाम् । प꣡तिः꣢꣯ । व꣡शा꣢꣯न् । अ꣡नु꣢꣯ । मँ꣡हि꣢꣯ष्ठ । व꣣ज्रिन् । ऋञ्ज꣡से꣢ । यः । श꣡वि꣢꣯ष्ठः । शू꣡रा꣢꣯णाम् ॥६४४॥


स्वर रहित मन्त्र

विदा राये सुवीर्यं भवो वाजानां पतिर्वशाꣳ अनु । मꣳहिष्ठ वज्रिन्नृञ्जसे यः शविष्ठः शूराणाम् ॥६४४


स्वर रहित पद पाठ

विदाः । राये । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । भुवः । वाजानाम् । पतिः । वशान् । अनु । मँहिष्ठ । वज्रिन् । ऋञ्जसे । यः । शविष्ठः । शूराणाम् ॥६४४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 644
(कौथुम) महानाम्न्यार्चिकः » प्रपाठक » ; अर्ध-प्रपाठक » ; दशतिः » ; मन्त्र » 4
(राणानीय) महानाम्न्यार्चिकः » अध्याय » ; खण्ड » ;
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पदार्थ -

(राये) = उस ऐश्वर्य के लिए जिसे हम उदार मनोवृत्ति से लोकहित के लिए दे डालते हैं [रा–दाने] (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (विदा) = प्राप्त कर । प्रभु के इस वाक्य को सुनकर जीव प्रश्न करता है इस शक्ति को प्राप्त कैसे करूँ? प्रभु उत्तर देते हैं कि तू (वशान् अनु) = संयमी–जितेन्द्रिय -वशी लोगों के पीछे चलता हुआ (वाजानां पतिः भवः) = शक्तियों का पति बन। जितेन्द्रियता ही शक्तिसम्पन्न बनने का एकमात्र मार्ग है। यह शक्तिसम्पन्न पुरुष अपने शरीर को वज्रतुल्य बनाकर 'मंहिष्ठ' कहलाया है। यह (वज्रिन् मंहिष्ठ ऋञ्जसे) = प्रभु की सच्ची आराधना करता है (यः) = जो (शूराणाम् शविष्ठः) = शूरों में भी शूरतम है। वस्तुतः बिना शूरता के दानशूरता भी हममें आती नहीं। निर्बल व्यक्ति कृपण मनोवृत्ति का बन जाता है। वह धन का त्याग करके प्रभु का आराधक बने यह उसके वश की बात नहीं रहती। 

भावार्थ -

हम जितेन्द्रिय बन शक्ति का सम्पादन करें।

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