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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 655
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
हि꣣न्वानो꣢ हे꣣तृ꣡भि꣢र्हि꣣त꣡ आ वाजं꣢꣯ वा꣣꣬ज्य꣢꣯क्रमीत् । सी꣡द꣢न्तो व꣣नु꣡षो꣢ यथा ॥६५५॥
स्वर सहित पद पाठहि꣣न्वानः꣢ । हे꣣तृ꣡भिः꣢ । हि꣣तः꣢ । आ । वा꣡जम्꣢꣯ । वा꣣जी꣢ । अ꣣क्रमीत् । सी꣡द꣢꣯न्तः । व꣣नु꣡षः꣢ । य꣣था ॥६५५॥
स्वर रहित मन्त्र
हिन्वानो हेतृभिर्हित आ वाजं वाज्यक्रमीत् । सीदन्तो वनुषो यथा ॥६५५॥
स्वर रहित पद पाठ
हिन्वानः । हेतृभिः । हितः । आ । वाजम् । वाजी । अक्रमीत् । सीदन्तः । वनुषः । यथा ॥६५५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 655
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - कौन बनता है ?
पदार्थ -
गत मन्त्र के उत्तरार्ध में 'कश्यप मारीच' कौन बनता है ? इस प्रश्न का उत्तर इस रूप में दिया था कि सोम, शुक्र और गवाशिर, परन्तु पुनः प्रश्न उत्पन्न होता है कि सोम, शुक्र व गवाशिर भी कौन बन पाता है ? इस प्रश्न का उत्तर प्रस्तुत मन्त्र में इस प्रकार दिया गया है कि -
, १. (हेतृभिः हिन्वानः) =[हि=to send forth, impel=प्रेरणा देना, भेजना] जीवन में प्रेरणा देनेवाला व्यक्ति ‘हेता' कहलाता है, उन हेताओं से निरन्तर ' हिन्वानः ' प्रेरणा दिया जाता हुआ व्यक्ति ही सौम्यतादि गुणों से सम्पन्न होता है । जिन्हें उत्तम प्रेरणा देनेवाले माता-पिता, आचार्य व अतिथि प्राप्त होते हैं, वे ही उत्तम मार्ग पर आगे और आगे बढ़ते हुए 'कश्यप-मारीच'=ज्ञानी बना करते हैं ।
२. (हितः) = ज्ञानी वे बनते हैं जोकि माता-पिता आदि से सदा सन्मार्ग पर हित=निहित व स्थापित होते हैं। मनुष्य सदा त्रुटियाँ करता है, परिणामत: पग-पग पर मार्गभ्रष्ट होने का भय है । उस समय जो व्यक्ति इन गुरुओं से पुनः ठीक मार्ग पर स्थापित कर दिये जाते हैं, वे ही अन्त में ‘कश्यप मारीच' की स्थिति को पाते हैं ।
३. (वाजी वाजम् आ अक्रमीत्) = यह माता-पिता आदि से प्रेरणा पानेवाला व्यक्ति यदि वाजी [वज गतौ] क्रियाशील=active होता है तभी (वाजम्) = ज्ञान (आ अक्रमीत्) = प्राप्त करता है । क्रियाशील, पुरुषार्थी ही ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ पाता है।
४. वे क्रियाशील व्यक्ति ही (यथा वनुष:) = [वन्-to win] विजेताओं की भाँति (सीदन्त:) = [सद्-to go, proceed=प्र+सद्] विघ्न-बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ते चलते हैं।
कश्यप मारीच बनने के लिए माता-पिता आदि की प्रेरणा के साथ बालक व युवा में भी सहज क्रियाशीलता व पुरुषार्थ का होना आवश्यक है। न अकेली प्रेरणा कार्य कर सकती है, न अकेला पुरुषार्थ। प्रेरणा और पुरुषार्थ का समन्वय होते ही ‘कश्यप मारीच' बन सकना सम्भव हो जाता है।
भावार्थ -
हमें सदा गुरुओं की उत्तम प्रेरणा प्राप्त होती रहे और पुरुषार्थ हमें कभी छोड़ न जाए।