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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 670
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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इ꣡न्द्रा꣢ग्नी जरि꣣तुः꣡ सचा꣢꣯ य꣣ज्ञो꣡ जि꣢गाति꣣ चे꣡त꣢नः । अ꣣या꣡ पा꣢तमि꣣म꣢ꣳ सु꣣त꣢म् ॥६७०॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्रा꣢꣯ग्नी । इ꣡न्द्र꣢꣯ । अ꣣ग्नीइ꣡ति꣢ । ज꣢रितुः꣣ । स꣡चा꣢꣯ । य꣣ज्ञः꣢ । जि꣢गाति । चे꣡तनः꣢꣯ । अ꣣या꣢ । पा꣣तम् । इम꣢म् । सु꣣त꣢म् ॥६७०॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्राग्नी जरितुः सचा यज्ञो जिगाति चेतनः । अया पातमिमꣳ सुतम् ॥६७०॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । जरितुः । सचा । यज्ञः । जिगाति । चेतनः । अया । पातम् । इमम् । सुतम् ॥६७०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 670
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

(इन्द्राग्नी) = इन्द्र और अग्नि- सब शक्तिशाली कर्मों का देवता इन्द्र और ज्ञान का देवता अग्नि (जरितुः) = स्तोता के (सचा) = साथ होते हैं, अर्थात् एक उपासक जब अपने जीवन को कर्म और ज्ञान के साथ संयुक्त करता है तब ये कर्म और ज्ञान (अया) = [अनया] इस रीति से (इमम् सुतम्) = इस उत्पादित सोम का (पातम्) = पान करते हैं कि वह शरीर में सुरक्षित होता है। शक्ति की रक्षा के लिए–तीनों ही १. ज्ञान, २. कर्म, ३. उपासना आवश्यक हैं । वेदों में इन्हीं तीन का प्रतिपादन किया है। यही काण्डत्रयी है । ये ही तीन काण्ड-कानून हैं । इन्हीं के अनुसार मनुष्य को चलना है। एक
वाक्य में कह सकते हैं कि ज्ञानपूर्वक कर्मों के द्वारा उपासना होती है और इस ब्रह्म-सान्निध्य से काम का विध्वंस होकर शक्ति की रक्षा होती है ।

इस स्थिति में मानव जीवन (यज्ञः) = यज्ञ, अर्थात् उत्तम कर्मों तथा (चेतन:) = [चिती संज्ञाने] उत्तम ज्ञान की (जिगाति) = विशेषरूप से स्थिति होती है। हमारे जीवन में यज्ञ और ज्ञान का प्रवेश होता है। वीर्यवान् पुरुष बुराइयों से दूर रहता है और उसका ज्ञान उत्तरोत्तर दीप्त होता जाता है।

भावार्थ -

हम वीर्य - रक्षा द्वारा अपने जीवनों को यज्ञमय व दीप्त बनाएँ । 

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